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निकालता या चिल्लाता है। रोगग्रस्त जीव द्रव्य पदार्थ को शरीर से बाहर निकालने की आपकी इच्छा और इरादा मुख्य होता है जिसे सांस छोड़ते समय चिल्लाकर प्रस्तुत किया जाता है।
___अलग-अलग अध्यापकों और लेखकों के छह उपचारी ध्वनियों पर अलग-अलग विचार है। इनकी पद्धतियां भी अलग-अलग हैं। जब उपचारी आवाज जोर से निकाली जाती है तब वह रोगग्रस्त ऊर्जा पर धमाकेदार प्रभाव डालती है। जब धीरे से या न सुनाई देने जैसी आवाज की जाती है तब वह धीमे से रोगग्रस्त या प्रयोग की गई ऊर्जा को बाहर फेंकती या निकालती है। जो रोगी हैं उनके लिए जोर से चिल्लाकर ध्वनि पैदा करना ठीक होता है और जो स्वस्थ या निरोगी होते हैं तथा जो अपने आंतरिक अंगों की केवल सफाई और ऊर्जन करना चाहते हैं, उनके लिए धीमी व हल्की आवाज पैदा करना ही ठीक होता है। (४) चक्रों द्वारा श्वसन पद्धति (क) PB करें। सांस को धीरे से खींचे और पीड़ित चक्र पर ध्यान लगायें।
ताजी प्राणशक्ति को चक्र के अंदर लेते हुए महसूस करें। कुछ क्षणों तक अपनी सांस रोके रहें और प्राणशक्ति को आत्मसात होता हुआ दृश्यीकृत करें। अपनी सांस को धीरे-धीरे छोड़ते हुए यह महसूस करें कि चक्र गंदे भूरे पदार्थ के बाहर निकाल या फैंक रहा है। अपनी सांस को कुछ क्षण रोकें और यह महसूस करें कि चक्र चमकदार और स्वस्थ हो रहा है। यह पूरी प्रक्रिया कई बार दोहरायें। PB करें। धीरे-धीरे सांस अंदर लें और पीड़ित अंग पर ध्यान लगायें। प्रभावित चक्र और अंग द्वारा प्राणशक्ति को अंदर की ओर खींचते हुए दृश्यीकृत करें। प्राणशक्ति को पहले चक्र में और फिर पीड़ित अंग में से गुजरते हुए दृश्यीकृत करें, अपनी सांस कुछ क्षणों तक रोकें और ऐसा महसूस करें या दृश्यीकृत करें मानो चक्र और पीड़ित अंग चमकीले होते जा रहे हैं। सांस को धीरे-धीरे बाहर छोड़ें और चक्र व पीड़ित अंग द्वारा भूरे गंदे पदार्थ को बाहर फेंकते हुए दृश्यीकृत करें। कुछ क्षणों तक अपनी सांस रोके और ऐसा महसूस करें मानो चक्र व पीड़ित