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________________ (छ) (झ) सेगी को पनीर तथा मसालेदार भोजन न खाने को कहें क्योंकि ये पदार्थ उसके रोग को बढ़ा सकते हैं। यह बहुत आवश्यक है। इन्हीं कारणों को ध्यान में रखकर विटामिन ई, सी, ए. बी १२ की अधिक मात्रा न लें। रोगी की अच्छी तरह सफाई करने के बाद उसे एक बड़े, हरे-भरे पेड़ के नीचे या साफ जमीन पर (ध्यान रहे कि जमीन के नीचे सैप्टिक टैंक न हो) लगभग २० मिनट तक आराम करने को कहें। इससे रोगी आंशिक रूप से ऊर्जित होगा। अत्यधिक प्राणशक्ति सोखने की संभावनाओं से बचने के लिए रोगी जानबूझकर पेड़ या भूमि से प्राणशक्ति न ग्रहण करे. अन्यथा उसकी स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है। समुद्र के पानी या नमकीन/खारे पानी में सफाई का अच्छा गुण होता है। यदि रोगी समुद्र के किनारे रहता हो तो प्रतिदिन कम से कम बीस मिनट तक समुद्र में तैरने के लिए कहें। यह प्राणशक्ति उपचार का एक विकल्प है। तैरने के बाद रोगी छायादार पेड़ के नीचे लेटकर आसपास के वातावरण से प्राणशक्ति सोख सकता हैं। यह उस समय करना चाहिए जब धूप बहुत तेज न हो यानि सुबह या शाम में यह प्रक्रिया की जानी चाहिए। ऐसे समय में प्राणशक्ति के घनेपन से बचा जा सकता है। यदि क्रिया विधि (झ) सम्भव न हो, तो जीवन भर खारे पानी में १५ से २० मिनट तक रोज नहाना चाहिए। यदि सम्भव हो तो पानी का तापमान ३६-४० डिग्री सेंटीग्रेड तक बनाये रखना चाहिए। यह बहुत जरूरी है क्योंकि यदि तापमान बहुत कम हो तो शरीर कमजोर हो सकता है और अगर बहुत गर्म हो तो कैंसर की कोशिकायें बहुत तेजी से बढ़ सकती हैं। बारीक पिसा नमक पैट्रोलियम जैली के साथ मिलाकर प्रभावित अंग पर लगाने से रोगी को आराम मिल सकता है क्योंकि रोगग्रस्त ऊर्जा को साफ करने और उसके घनेपन को दूर करने के गुण नमक में होते हैं। (ञ) ५१२२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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