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कई बार सामान्य और स्थानीय झाड़ बुहार करें। रोगी को आराम करने दें और धीरे-धीरे भू-प्राण शक्ति को सोखने या प्राप्त करने दें। सफाई की क्रिया करने से रोगी के शरीर में आंशिक रूप से "प्राणशक्ति का खोखलापन' बनेगा। इस खालीपन की ओर स्वाभाविक रूप से भू-प्राण शक्ति तेजी से जाएगी, जिससे ऊर्जन होगा। इसमें लगने वाले समय को कम करने के लिए आप भी ऊर्जन करें। उपक्रम (0) चक्रों का आवर्तन
ऊर्जा चक्र लगातार एक दिशा में घूमने के बजाये: बारी बारी से घड़ी की उल्टी दिशा तथा घड़ी की दिशा में सामान्यतः १८० डिग्री-१८० डिग्री घूमते हैं। घड़ी की उल्टी दिशा में घूमते समय प्राणशक्ति ऊर्जा चक्र से बाहर की ओर निकलती है और घड़ी की दिशा में इसका विपरीत होता है अर्थात् प्राणशक्ति बाहर से अन्दर आती है। प्राणशक्ति उपचारक जब चक्र द्वारा ऊर्जा प्राप्त करता है तो चक्र मुख्य रूप से घड़ी की दिशा में घूमता है और घड़ी की उल्टी दिशा में बहुत कम घूमता है। जब उपचारक प्राणशक्ति प्रक्षेपित करता है तो चक्र मुख्य रूप से धड़ी की विपरीत दिशा में घूमता है और बहुत ही कम मात्रा में घड़ी दिशा में घूमता है।
उपचार के दौरान वह रोगी की रोगग्रस्त ऊर्जा को ग्रहण करता है, जिससे उसको हानि हो सकती है, इसके लिये उपचारक को उपचार के दौरान अपने हाथों की वायवी सफाई करते रहनी चाहिए जिसकी विधि अध्याय ४ के क्रम संख्या ५ (झ) में बतायी गई है।
चक्र का स्वरूप या उसकी बनावट उसके घूमने की गति पर निर्भर होती है। सामान्य परिस्थिति में तेजी से घड़ी की दिशा या उसकी उल्टी दिशा में घूमने की गति से चक्र कई नोंकदार पंखुड़ियों वाले एक कमल के फूल के समान दिखाई देता है। प्राणशक्ति के घड़ी की दिशा में व उसकी उल्टी दिशा में घूमने के कारण इन नोंकदार पंखुड़ियों का एक "प्रकाशकीय निर्माण होता है। इसी कारण तिब्बती, चीनी व संस्कृत भाषा की योग पर प्राचीन पुस्तकों में चक्र को आम तौर पर कई नोकदार पंखुड़ियों वाले कमल के फूल के रूप में दिखाया जाता है । यदि चक्र की गति कम हो तो पंखुड़ियों का सही आकार और उनकी संख्या को साफ-साफ देखा जा सकता है। चक्र के पंखुड़ियों का आकार गोल होता है। जब चक्र तेजी से घूमता है तब उसमें उभार आ जाता है या वह मोटा हो जाता है। जब चक्र बहुत तेज गति से
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