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रोगग्रस्त अंग से दूर होते और नजदीक आते हैं। झुरझुरी का अनुभव रोगी को प्रभावित अंग व शरीर के दूसरे भाग में भी होता है। असमानान्तर रूप से- इसमें दोनों हाथों को रोगग्रस्त के एक ही तरफ रखा जाता है लेकिन दोनों समानान्तर नहीं रखे जाते | इस प्रकार रखना चाहिए कि रोगग्रस्त अंग की ओर दोनों हाथों द्वारा प्रेषित ऊर्जा प्रेषित हो। उक्त दोनों विधियों में ऊर्जन से पहले सफाई अत्यावश्यक है। यह उन लोगों के लिए की जाती है जहाँ प्राणशक्ति की अधिक जरूरत पड़ती है। अध्याय ४ में बताये गये सामान्य रोगों को जल्दी ठीक करने के लिए भी इस प्रकार से दुगना ऊर्जन किया
जा सकता है। उपक्रम (५) ऊर्जित करनाः वितरणशील झाड़-बुहार पद्धति
इसका अर्थ केवल इतना है कि शरीर के अन्य भागों में स्थित अतिरिक्त प्राणशक्ति को फिर से रोगग्रस्त अंग की ओर भेजने के लिए किया गया झाड़ बुहार | इसके लिये पहले रोगग्रस्त भाग की सफाई करके, आसपास के भागों और चक्रों में स्थिति अतिरिक्त प्राणशक्ति को झाड़ बुहार के द्वारा रोगग्रस्त अंग की ओर ले जाएं। यद्यपि इस प्रकार के ऊर्जन से सामान्य रोग ठीक हो सकते हैं, किन्तु गंभीर रोगों के लिए यह प्रभावकारी नहीं है क्योंकि उसके लिए बहुत अधिक प्राणशक्ति की आवश्यक्ता होती है। उपक्रम (६) उपचार के लिए भू-प्राण शक्ति का उपयोग
भू-प्राणशक्ति वायु प्राणशक्ति से चार-पांच गुना, भूमि से ऊपर के क्षेत्र में मिलती है। ऊर्जा की यह अधिक मात्रा उपचार के काम में लायी जा सकती है। इसके लिए रोगी को जमीन पर लेटने के लिए कहें। नीचे बिछाने के लिए सूत की दरी या बांस या घास की चटाई का उपयोग किया जा सकता है। चमड़े, रबड़, स्पंज की गद्दी आदि से बचें क्योंकि इनसे भूमि से शरीर की ओर प्राणशक्ति आने में बाधा होती है।