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________________ ६. भू, वायु एवं पेड़-प्राणशक्ति प्राप्त होने के बाद प्राप्त प्राणशक्ति को पूरे शरीर में फैला दें। इसके लिए आप अपने मन में इस तरह दृश्यीकरण करें कि मानो एक सफेद प्रकाश या प्राणशक्ति पूरे शरीर में भर गई हो। प्राणशक्ति को पीछे से आगे की और फिर आगे से पीछे की ओर और अपनी इच्छाशक्ति से कई बार लगातार घुमाते रहें। ७. उन्नत चिकित्सा पद्धति उपक्रम (१) प्राणशक्ति श्वसन पद्धति द्वारा हाथ व उंगलियों को संवेदनशील बनाना अब तक आप हाथों को भाग ४ में बतायी विधि द्वारा संवेदनशील बनाने में वक्ष या अर्धदक्ष हो गये होंगे। अब प्राणशक्ति श्वसन के दौरान हाथों व उंगलियों के चक्रों पर ध्यान लगायें तथा कुछ समय तक यह श्वसन करते रहें व ध्यान लगाये रखें। इससे आपके हाथ चक्र संवेदनशील बनेंगे। कुछ अभ्यास के पश्चात् आप पायेंगे कि प्राणशक्ति श्वसन प्रक्रिया के प्रारम्भ करते ही बहुत ही अल्प समय में ये चक्र ऊर्जित होते हैं और संवेदनशील बन जाते हैं। इससे आप पक्के तौर पर अपनी हथेलियों और उंगलियों द्वारा जांच (Scanning) कर सकते हैं। कुछ और अभ्यास के बाद आप पायेंगे कि बगैर प्राणशक्ति प्रक्रिया किये हुए भी मात्र इन हाथों व उंगलियों पर ध्यान देने से ये संवेदनशील और ऊर्जित हो जाते हैं। उपक्रम (२) उंगलियों द्वारा जांच करना यदि कोई व्यक्ति आँख की समस्या से पीड़ित है तो आम तौर पर उसकी आँख की प्राणशक्ति कम होगी जबकि उसके आसपास का आंतरिक आभामण्डल सामान्य हो सकता है। चूंकि हथेली सामान्यतया बड़ी होती है और आँखों के आंतरिक आभामंडल का व्यास लगभग दो इंच का होता है, इसलिए हथेली छोटे रोगग्रस्त भागों को महसूस नहीं कर पाती। अगर जांच करने के लिये केवल एक या दो उंगलियों का उपयोग किया जाये, तो इस समस्या को दूर किया जा सकता है। रीढ़ की हड्डी भी एक या दो उंगलियों की सहायता से जांच करनी चाहिये। इसी प्रकार अन्य अंग भी हो सकते हैं, जिनकी जांच उंगलियां द्वारा हो पाती है, जैसे कान के अन्दर, गले पर इत्यादि।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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