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________________ इस श्वसन प्रक्रिया को उपचार प्रारम्भ करने से ठीक पहले करें। पांच से पन्द्रह बार तक आवश्यकतानुसार करें। उपचार के दौरान भी सुविधानुसार इसको दोहरायें। प्राणशक्ति श्वसन का अच्छी तरह अभ्यास कीजिए, यह अत्यन्त आवश्यक है। ३. भू- प्राणशक्ति प्राप्त करना जैसा कि पहले वर्णन किया जा चुका है, प्रत्येक पैर में एक-एक छोटा चक्रे ( तलुवा चक्र) होता है। कुर्सी पर आराम से बैठकर नंगे पैरों को भूमि पर रखें। अब तलुआ चक्रों पर ध्यान केन्द्रित करके क्रम संख्या (२) में वर्णित प्राणशक्ति श्वसन करें। इससे तलुवा चक्र द्वारा बहुत अधिक मात्रा में भू-प्राण शक्ति कर सकते हैं। भू-प्राणशक्ति वायु- प्राण शक्ति के तुलना में अधिक प्रभावी होती है। इस प्रक्रिया को प्रारम्भ करने से पहले अपने तलुवों को हाथ के अंगूठे से दबायें या थोड़ा सा खुजायें । इससे आपके तलुवे चक्र अधिक संवदेनशील बन जायेंगे और अधिक मात्रा में भू-ऊर्जा ग्रहण कर सकेंगे। ध्यान रहे कि जिस भूमि से आप ऊर्जा ग्रहण करें, वह गंदी या अशुद्ध न हो जैसे श्मसान भूमि, नाले के ऊपर, मल-मूत्र स्थानादि । ४. वायु से प्राणशक्ति प्राप्त करना अपने हाथों को संवेदनशील बनाकर, हाथ चक्रों (H) को खुला रखकर उस पर ध्यान केन्द्रित करें और साथ ही प्राणशक्ति श्वसन प्रक्रिया करें। ५. पेड़ से प्राणशक्ति प्राप्त करना अपने हाथों को संवदेनशील बनायें। फिर किसी स्वस्थ व घने पेड़ के पास खड़े होकर या बैठकर, उससे निवेदन करें कि वह अपनी अतिरिक्त स्वास्थ्यमयी ऊर्जा आपको दे दे। इस निवेदन को तीन बार दोहराएं। फिर अपने हाथ चक्रों पर ध्यान केन्द्रित करें और साथ ही प्राणशक्ति श्वसन प्रक्रिया करें। श्वसन प्रक्रिया दस बार करें और फिर पेड़ को तीन बार धन्यवाद दें। हो सकता है कि आपमें से कुछ को सुन्न होने का या पूरे शरीर में झुरझुरी का अनुभव हो । ५.९५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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