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उपक्रम (३४) थकान- Relieving Tiredness
(क) जैसा उक्त उपक्रम (३३) में वर्णित है। (ख) कामकाजी व्यक्तियों के लिये इस पद्धति का उपयोग "ऊर्जा शक्ति को
बढ़ाने" के रूप में किया जाता है। उपक्रम (३५) यदि आप निश्चिंत न हों तो क्या करें (सामान्य रोगों के लिए)
(क) रोगी से उसकी समस्या पूँछे। (ख) C (AP) (२०-३० बार)/ E. (ग) जरूरत के अनुसार इलाज दोहरायें । उपचार कितने अंतराल पर किया जाये यह निम्न कारकों पर निर्भर करता है : (१) रोग की गंभीरता और तीव्रता । (२) प्राणशक्ति की खपत की दर। जलने, कटने, सूजन, तीव्र संक्रमण रोगों
में इसकी ज्यादा खपत होती है। (3) उपचार किये जा रहे अंग का नाजुकपन और प्रमुखता। नाजुक अंग का
इलाज लम्बे अंतराल पर करना चाहिए, क्योंकि इससे प्राणशक्ति के घनेपन से बचा जा सकता है और रोगी की उम्र व स्वास्थ्य की दशा। बहुत ही कमजोर और बूढ़े व्यक्तियों के लिए हल्के और लम्बे इलाज की जरूरत पड़ती है क्योंकि उनके
प्राणशक्ति के ग्रहण करने की शक्ति कम होती है। (११) उपचार की सम्पूर्ण या समग्र दृष्टि- Integrated Approach
रोग का कारण आंतरिक या बाहरी हो सकता है या दोनों हो सकते हैं। यह बात साफ है कि व्यक्ति का स्वास्थ्य भौतिक शरीर, जीव द्रव्य शरीर और मानसिक स्वास्थ्य के अच्छे होने पर निर्भर करता है। यद्यपि प्राणशक्ति उपचार द्वारा कई सामान्य और गंभीर रोगों का इलाज हो सकता है, फिर भी इलाज को पक्का करने व तेज करने के लिए जड़ी बूटियां या मैडिकल उपचार लेना