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________________ (ग) यदि रोगी भावनात्मक रूप से परेशान है, तो GS कई बार करें तथा C'(11,6,1)/E इसके अतिरिक्त 3 और अधिवृक्क ग्रंथियों के दाये और बांयी ओर T करें। इनमें प्राणशक्ति अधिकतर घनी होती है। रोगी के आराम के लिये T7b (घ) जब तक जरूरी हो, सप्ताह में तीन बार इस इलाज को करें। उपक्रम (३२) सामान्य जोड़ों का दर्द या गठिया- Minor Arthiritis or Rheumatism (क) जब तक आंशिक या समुचित रूप से आराम न मिले, तब तक C(AP)~E (ख) (रीढ़ की हड्डी) (ग) C(6, 4, 1y/E-- चूंकि 1 शरीर के मांसपेशी और अस्थितंत्र को नियंत्रित व ऊर्जित करता है, इसलिये 1 का उपचार जरूरी है। यदि रोगी उच्च रक्तचाप से पीड़ित हो, तो इस क्रिया को न करें। (घ) जब तक जरूरी हो, इस इलाज को सप्ताह में कई बार करें। (ङ) यदि रोगी जाहिरा तौर पर ठीक हो गया है, तो आवश्यक नहीं कि वह पूरी तौर पर ठीक हो गया है। कभी-कभी आंशिक रूप से ठीक होने पर भी ऐसा होता है इसीलिए रोगी का कई बार इलाज करने की जरूरत होती है। उपक्रम (३३) सामान्य कमजोरी- General Weakness (क) GS (२ या ३) (ख) T (1,2,6) (ग) इस विधि का उच्च रक्तचाप, ट्यूमर, रतिज रोग के रोगी या रतिज रोग के इतिहास रखने वाले व्यक्तियों पर न करें। (घ) जब तक जरूरी हो, तब तक सप्ताह में तीन बार इलाज दोहरायें।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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