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________________ समाधि हो गयी हो, तब भी उनसे इसी प्रकार मानसिक रूप से प्रार्थना करना चाहिए। गुरु के आशीर्वाद के बगैर उपचार करना कठिन है। यदि आप फिर भी न सफल हो पावें, तो अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए. उनसे क्षमा माँगते हुए, प्रार्थना करें कि वे अपना स्वयं का इलाज स्व-प्राण चिकित्सा पद्धति से करें। इस सम्बन्ध में उनका ध्यान अध्याय ६ में विशेष तौर से उसके क्रम (१), (२), (४), (५), (१०), (११), व (१२) पर दिलाएं। उनसे यह भी निवेदन कर सकते हैं कि जिस प्रकार आहार व औषधि शरीर की रक्षा के लिए ग्रहण करना शास्त्र सम्मत है ताकि धर्म–साधन हो सके, उसी प्रकार चिकित्सा के इस उपाय को समझना चाहिए। (E) प्राणशक्ति उपचार- सार प्राणशक्ति उपचार से संबंधित अध्ययन के लिए उपयोगी कुछ खास विचार बिन्दुओं का सार निम्न है: वास्तव में पूरा भौतिक शरीर दो प्रकार के शरीर से बना होता है: एक दिखाई देने वाला भौतिक शरीर तथा दूसरा न दिखाई देने वाला वायवी शरीर जो एक महीन, सूक्ष्म पदार्थ से बना होता है जिसे वायवी पदार्थ कहा जाता है। यह वायवी शरीर जीवद्रव्य शरीर के अनुरूप होता है। (२) प्राणशक्ति के लिए वायवी शरीर वाहन का कार्य करता है। (३) वायवी शरीर में कई नाड़ियां होती हैं, जिनके द्वारा प्राणशक्ति का संचार होता है। ये वायवी नाड़ियां शिरोबिन्दुओं या जीवद्रव्यो नाड़ियों के समान होती है। वायवी शरीर का आकार या ढांचा दिखाई देने वाले भौतिक शरीर पर आधारित होता है। वायवी शरीर में कई चक्र या तेज घूमने वाले वायवी केन्द्र होते हैं जो प्राणशक्ति को सोखते, पचाते और उसका वितरण करते हैं। यह पूरे शरीर को सही ढंग से कार्य करवाने के लिए जिम्मेदार होता है। ५.६३
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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