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________________ पकड़ने की सम्भावना हो सकती है। इसके अतिरिक्त उसको प्रतिदिन द्विहृदय पर ध्यान चिन्तन करना चाहिए। (व) सम्पूर्ण प्राणशक्ति उपचार में उपचारक को रोगी का स्पर्श करने की आवश्यकता नहीं है। (६) क्या बिना जांच किये उपचार संभव है यदि उपचारक जांच नहीं कर पाता है, तो भी बिना जांच किये उपचार सम्भव है। साधारण केसों में आप रोगी से पूछे कि उसके शरीर के कौन सा भाग ठीक नहीं है या पीड़ित हैं। उसके बाद तीन बार सामान्य झाड़ बुहार करें तथा रोगी द्वारा बताये अंगों/भागों एवम् सम्बन्धित चक्रों पर स्थानीय झाड़ बुहार करें। गंभीर रोगों के लिए निर्धारित पद्धतियों को अपना सकते हैं। जैसे यदि रोगी हृदय रोग से पीड़ित है तो अधिकतर उसका हृदय और सौर जालिका चक्र अस्थिर या गलत ढंग से कार्य कर रहा होगा। इसलिए इन दोनों चक्रों की सफाई और ऊर्जित करने से रोगी की स्थिति में अधिक सुधार हो सकता है। हृदय या हृदय चक्र को सदैव पिछले हृदय चक्र द्वारा ही ऊर्जित करना चाहिए। हालांकि आप बिना जांच किये कदाचित् उपचार कर सकते हैं, फिर भी आपको बहुत ही सटीक, सही और प्रभावी होना चाहिए। कभी-कभी गलत ढंग से कार्य करने वाले चक्र पीड़ित अंग से दूर होते हैं। (७) आध्यात्मिक व्यक्तियों का उपचार __ अध्याय १ के क्रम (ख) (३) में वर्णन किया गया है कि ऊर्जा का प्रवाह उच्च स्तर से निम्न स्तर तक होता है। आध्यात्मिक व्यक्तियों, संत, साधुओं का ऊर्जा स्तर अति विशाल और बड़ा होता है, जिसकी सानी प्राणशक्ति उपचारक नहीं कर सकता, चाहे वह अपना ऊर्जा स्तर विभिन्न उपायों से कितना ही क्यों न बढ़ा ले। इन व्यक्तियों की इसी कारण से समुचित तौर पर जांच करना कठिन होता है। ऐसी परिस्थिति में उपचारक को नौ बार णमोकार मंत्र बोलकर अति विनय एवम् भक्तिपूर्वक उस आध्यात्मिक व्यक्ति के गुरु से उनके चरणों में नमन करके प्रार्थना करनी चाहिए कि वे अपना आशीर्वाद दें कि उस आध्यात्मिक व्यक्ति का वह (उपचारक) उपचार कर सके। इस प्रार्थना को बार-बार करें। यदि गुरु दूरस्थ विराजित हों अथवा उनकी ५.६२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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