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________________ (ट) प्राणशक्ति को मुक्त करना जब आप उपचार पूरा कर चुके, तो आपके व रोगी के मध्य स्थापित हुई वायवी डोर (etheric cord) को तोड़ना परमावश्यक है। इसकी विधि अध्याय १ के क्रम (ख )(१२) में वर्णित है। प्राणशक्ति को सहानुभूति से प्रेषित करना यदि उपचारक रोगी को ऊर्जित करने के लिए प्राणशक्ति को सहानुभूति से प्रेषित करता है, तो रोगी उसको शीघ्र ही आसानी से ग्रहण कर लेता है। किन्तु यदि उपचारक अधिक संकल्पशक्ति लगाता है, तो उसका उसके कोशिकाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और आरोग्य की दर कम हो जाती है या विपरीत प्रभाव भी हो जाता है। इसी प्रकार क्रोध या चिड़चिड़ेपन की दशा में यदि ऊर्जन किया जाए, तो उसका विपरीत विध्वंसात्मक प्रभाव पड़ता है। उपचार करने में कितनी इच्छाशक्ति लगायें जब आप 'इरादा' या 'इच्छा' करते हैं तो अपनी मांसपेशियों को तनाव में रखने या असाधारण परिश्रम करने की आवश्यक्ता नहीं है। जब आप पूरी समझ, आशा से या ध्यानमग्न होकर कार्य करते हैं, वही आपकी इच्छा को दर्शाती है। एक पुस्तक को पढ़ने में जितना ध्यान लगाया जाता है, बस उतनी ही इच्छा शक्ति प्राणशक्ति उपचार के लिए साधारणत: काफी रहती है। रोगी को भूल जामा उपचारक को रोगी का उपचार करने के पश्चात् तुरन्त ही भूल जाना चाहिए और न उपचार का परिणाम जानने का प्रयत्न करना चाहिए, अन्यथा जो उसने अपने व रोगी के बीच की वायवी डोर को काटा था, वह पुनः जुड़ सकती है। इस दशा में रोगी व उपचारक दोनों का अहित हो सकता है। रोगी की रोगग्रस्त ऊर्जा उपचारक के शरीर में आकर उसको रोगी बना सकती है।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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