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________________ जब रोगी के भृकुटि चक्र को ऊर्जित करना हो, तो हाथ चक्र से ऊर्जित किये जाने पर उसकी आंखों का सीधा ऊर्जन सम्भव हो जाता है। इसलिए भृकुटि चक्र को ऊर्जन करने के लिए अपने हाथ की तर्जनी व मध्यमा उंगलियों को मिलाकर उन्हें रोगी के भृकुटि चक्र की ओर इंगित करके करना चाहिए और यह सुनिश्चित करिए कि उनकी सीध में रोगी की आंखें न आने पावें। अपने हाथों की वायवी सफाई रोगी के उपचार के दौरान रोगी की रोगग्रस्त ऊर्जा उपचारक द्वारा अनजाने में ग्रहण हो जाती है, इसके लिय उपचारक को बीच बीच में अथवा दो प्रक्रियाओं के मध्य में अपने हाथों व बाहों को प्राणशक्ति ऊर्जा द्वारा बार-बार साफ करते रहना चाहिए। अपने दांये बांह के ऊपरी भाग से नीचे हाथों की उंगलियों एवम् उसके लगभग छह इंच आगे तक, बांये हाथ से दांयी बांह से लगभग दो इंच दूरी रखकर अपनी संकल्प शक्ति से अपने बांये हाथ के ऊर्जा चक्र से ऊर्जा प्रेषण करते हुए सफाई करना चाहिए। इसी प्रकार अपने बांयी बांह के ऊपरी भाग से नीचे हाथों की उंगलियों एवम् उसके लगभग छह इंच आगे तक, दांये हाथ से बांयी बाह से लगभग दो इंच की दूरी रखकर अपनी संकल्प शक्ति से अपने दांये हाथ के ऊर्जा चक्र से ऊर्जा प्रेषण करते हुए सफाई करना चाहिये। यह सफाई तीन-तीन बार या अपनी तसल्ली हो जाने तक करना चाहिए। ऐसा न करने पर उपचारक द्वारा रोगग्रस्त ऊर्जा ग्रहण करने के कारण हानि हो सकती है। प्राणशक्ति को स्थिर करना एवम् सील करना इसकी विधि अध्याय १ के क्रम (ख) (११) में वर्णित है। यहां यह उल्लेखनीय है कि हाथ के व तलुओं के लघु चक्रों को कभी स्थिर या सील नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये वायु ऊर्जा को ग्रहण करते हैं और इनके स्थिरीकरण से ये चक्र इस ऊर्जा को ग्रहण करने में अक्षम हो जायेंगे।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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