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करें तथा महसूस करें। चूंकि यह ऊर्जा उपचारक के शरीर के माध्यम से जाती है, इसलिए यह आवश्यक है कि आपके द्वारा ग्रहण की गयी प्राणशक्ति ऊर्जा रोगी को प्रेषित ऊर्जा से अधिक होनी चाहिए। इसके लिये आप बार-बार यह सोचते रहिए कि मैं प्रेषण की गई ऊर्जा से अधिक ऊर्जा ग्रहण कर रहा हूँ। यदि किसी कारणवश आपके द्वारा अधिक ऊर्जा प्रेषित कर दी जाती है, तो आप कमजोर हो सकते हैं। हाथ चक्रों के माध्यम से ऊर्जा प्रवाह को आसान बनाने के लिए अपनी दोनों बगलें थोड़ा सा खुली रखिये, यह बहुत जरूरी है। जब आप प्राण ऊर्जा द्वारा ऊर्जन करें तो उसको उचित, अत्यन्त स्पष्ट निदेश दीजिए कि उसको रोगी के चक्र / अंग में पहुंचकर क्या करना है तथा इसको कम से कम तीन बार दोहरायें। फिर उसका यथासम्भव दृश्यीकरण करके अथवा महसूस करके उस निर्देश के पालन को सुनिश्चित कीजिए। यदि आपके हाथ में कुछ दर्द या असहजता महसूस हो, तो यह रोगग्रस्त ऊर्जा के कारण होगा, ऐसी दशा में अपना हाथ झटककर उसको फेंकते रहें। जब तक उपचार किया जा रहा चक्र/अंग अच्छी तरह ऊर्जित नहीं हो जाता, तब तक ऊर्जित करते रहिए। यदि उपचार किये जा रहे स्थान से हल्के से प्राणशक्ति लौटती हुई मालुम पड़े. या आपके द्वारा प्रेषित किये जा रहे ऊर्जा में ठहराव सा आता मालुम पड़े तो समझ लीजिए कि समुचित ऊर्जन हो चुका है और ऊर्जन बन्द कर देना चाहिए। इसके अलावा उपचार किये गये चक्र/अंग की जांच करके यह पता लगाया जा सकता है कि समुचित ऊर्जन हो गया है या नहीं। यदि किसी कारणवश अधिक ऊर्जन हो गया हो तो सफाई के तरीके से इसे कम कर दे। ऊर्जन उंगलियों के चक्रों से भी किया जा सकता है, किन्तु यह बहुत तीव्र होता है और रोगी को चुभन या दर्द हो सकता है जो ठीक नहीं है। इस प्रक्रिया को अपनाने से पहले उपचारक को हाथ चक्रों द्वारा ऊर्जन करने में दक्ष होना चाहिए।
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