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________________ (२) स्थानीय- स्थानीय विशेष अंग एवम् चक्र की सफाई को कहते (१) सामान्य झाड़ पुहार- (General Sweeping) (क) रोगी को खड़े अथवा बैठी स्थिति में दोनों एड़ियों को परस्पर मिलाने के लिये कहें, पैर खुले रहें। (ख) आप अपने दोनों हथेलियों को मिलाकर उसे कटोरानुमा आकार देकर लम्बवत स्तर (vertical plane) में रोगी के सिर से लगभग छह इंच ऊपर रखें। फिर मध्य से लेकर उसके शरीर के मध्य भाग में होकर, दोनों पैरों के मध्य में होते हुए दोनों हाथों को नीचे की ओर धीरे से लायें और यह सोचें कि आप रोगी के रोगग्रस्त एवम् उपयोग हो गयी हुई ऊर्जा को रोगी के शरीर से निकालकर अपने हाथों में ले रहे हैं तथा इसको महसूस कीजिये। यदि आपके हाथ संवेदनशील हैं तो इसमें कोई कठिनाई नहीं होगी। पैरों तक पहुंचने के बाद, रोगग्रस्त जीवद्रव्य पदार्थ को फैंकने के लिए हाथों को थोड़ा ऊपर उठाते हुए अपने इच्छाशक्ति द्वारा उस संवित की गयी ऊर्जा को बेकार ऊर्जा निस्तारण की इकाई (waste disposal urit) जैसे नमक का पानी, जिसका वर्णन अध्याय १ क्रम सं. (ख) (१३) में दिया है, की ओर हाथों से तेजी से झटके से फेंकते हुए उसको निदेश दें कि वह इसमें घुलकर नष्ट हो जाये। रोगग्रस्त जीवद्रव्य पदार्थ को फिर से दूषित होने से और स्वयं को भी दूषित होने से बचाने के लिए यह बहुत ही जरूरी है। यदि ऐसा नहीं किया जाये तो इससे न सिर्फ आपकी उंगलियों, हाथों और हथेलियों में दर्द होगा बल्कि आपका शरीर भी कमजोर हो जायेगा और/या रोगी की बीमारी भी आपको लगा सकती है। इसके बाद चित्र ५.०३ में दर्शाये हुए रेखायें २, ३ 2,3,4,5 ४, ५ के सहारे इस क्रिया को दोहरायें। (ग) इसके पश्चात अब आप अपने हाथों की उंगलियों को कटोरेनुमा के बदले खुली सीधे कर दें। फिर इसी प्रकार उक्त क्रिया को
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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