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(२) प्राणशक्ति का उभार- यह बहुत अधिक प्राणशक्ति और जीवद्रव्य
पदार्थ के जमा होने के कारण होता है। यह रोगग्रस्त हो जाता है क्योंकि ताजी प्राणशक्ति आसानी से आ जा नहीं सकती। इससे
भी ऊर्जा चक्र रोगग्रस्त जीवद्रव्य पदार्थ से भर जाता है। (३) एक ही अंग में कमी व उभार की संभावना- यह हो सकती है।
उदाहरण के तौर पर जिगर का बांया भाग घना या उभार वाला हो सकता है और दांया भाग खोखला या दबा हुआ और कमजोर
प्राणशक्ति वाला हो सकता है। (४) आंतरिक आभा मंडल जितना छोटा होगा, प्राणशक्ति उतनी ही
कमजोर होगी। यह जितना बड़ा उभार वाला होगा, प्राणशक्ति
उतनी ही घनी होगी। बीमारी की तीव्रता इसके अधिक छोटापन __या अधिक बला अकार पर निर्भर है। (५) किसी से वाद-विवाद होने पर अथवा किसी थकान आदि के
कारण प्राणशक्ति असामान्य हो जाती है, किन्तु कुछ समय बाद
स्वयमेव ही ठीक हो जाती है। (६) किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले रोगी से पूछताछ करनी
चाहिये। (७) अन्त में यह निष्कर्ष निकालिए कि किस अंग व चक्र का उपचार
आवश्यक है। उसकी प्राणशक्ति के स्तर एवम् स्वस्थता की क्या स्थिति है। निष्कर्ष निकालें कि कौन सा अंग का एवम् चक्रों का
क्या उपचार करना है। झाड़-बुहार--- (Sweeping) यह सफाई की एक पद्धति है। इसमें हाथों का उपयोग किया जाता है। यह दो प्रकार की होती है। (१) सामान्य- इसमें पूरे जीव द्रव्य शरीर की सफाई की जाती है।
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