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(ङ) जांच प्रक्रिया- (Scanning) (१) यदि आपके हाथ अति संवेदनशील हो गये हों, तो रोगी के बाह्य
आभा मंडल को महसूस कर सकते हैं। अपना हाथ रोगी से लगभग तीन मीटर दूर रखें, फिर धीरे-धीरे हाथ रोगी के नजदीक लेते जाएं। जब आपको बाहरी आभा महूसस हो, तो रुक जायें।
रोगी की बाहरी आभा का आकार प्रकार की जांच करिये। (२) इसके बाद थोड़ा आगे बढ़े तो आपको स्वास्थ्य आभा जो बाह्य
आभा से थोड़ी सी अधिक धनी होगी, महसूस होगी। इसकी जांच कीजिये कि कहीं इस आकार की विकृति तो नहीं हो गई या
कहीं छोटा-बड़ा तो नहीं है। (३) इसके बाद सबसे महत्वूपर्ण आंतरिक आभा की जांच करना है जो
सामान्यतः भौतिक शरीर से लगभग पांच इंच पर होता है। रोगी के सिर से पैर तक और आगे से पीछे तक जांच करें। दांये से बांये तक जांच करें। कहां असमानता है। इसी प्रकार विभिन्न ऊर्जा चक्रों के व्यास की जांच करें। गले की जांच करते समय सही व पूरी जांच के लिये रोगी की ठोड़ी ऊपर उठाकर रखनी चाहिए, क्योंकि ठोड़ी की आंतरिक आभा गले की वास्तविक परिस्थिति में बाधा डालती है। चूंकि छाती के स्तनाग्र फैफड़ों के सही जांच करने में बाधा डालती है, इसलिये फँफड़े की जांच सामने से करने के बजाय बगल से व पीछे की ओर से की जानी चाहिए। मुख्य चक्रों, विशेष एवम् रोगग्रस्त अंगों, रीढ़ की हड्डी की
ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। (४) सौर जालिका चक्र पर विशेष ध्यान दीजिए, इसका भाग ४ में
विस्तारपूर्वक वर्णन है। (५) यहाँ यह ज्ञातव्य हो कि यदि आप विभिन्न चक्रों का पास से माप
लेंगे, तो अनेक चक्रों का माप लेना शालीनता के विरुद्ध होगा
और उसमें रोगी का प्रतिरोध होना स्वाभाविक है, विशेष तौर पर मूलाधार चक्र, पैरिनियम चक्र, काम चक्र, नाभि चक्र, सौर जालिका
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