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(२) अपनी आँखें बन्द करें। फिर अपनी सांस को धीमी गति से एक
लय से अंदर खींचें और बाहर छोड़ें और कई मिनट तक अपना ध्यान हथेलियों के बीच के हिस्से को महसूस करते हुए कीजिए। इससे हाथ के चक्र उत्तेजित होते हैं और इससे सूक्ष्म ऊर्जा और पदार्थ को महसूस करने के लिए हाथ संवेदनशील होते हैं या उसके लिए योग्य हो जाते हैं।
इसको सुनिश्चित करने के लिए, पहले एक हथेली के बीच के भाग को दूसरे हाथ के अगूठे से कुछ पल तक खुजाइये और प्रत्येक उंगली के सभी पोरों को भी थोड़ा-थोड़ा सा खुजाइये। इसी प्रकार दूसरे हथेली के बीच के भाग और हाथ की उंगलियों के पोरों को खुजाइये। इसके बाद आँखें बन्द करके उक्त ध्यान लगाइये। इससे हाथ-चक्र व उंगलियों के चक्र शीघता व सुगमता
से ऊर्जित हो जाते हैं और हाथ संवदेनशील बन जाते हैं। (३) जब आप उक्त ध्यान लगायेंगे तो महसूस करेंगे कि दोनों
हथेलियों के बीच में एक प्रकार से चुम्बकीय तरंग स्थापित हो गई है, हो सकता है कि झुरझुरी, कम्पन या गर्मी महसूस हो। ध्यान लगाये रहना जारी रखें और अपने दोनों हाथों की परस्पर दूरी धीरे-धीरे इस प्रकार बढ़ायें कि उक्त तरंग का विच्छेद न हो। अपने हाथों को घीरे-धीरे अधिक से अधिक दूरी तक फैलाकर ले जायें, तब भी उक्त तरंग का विच्छेद नहीं होगा। हाथों को संवदेनशील का लगभग एक महीने तक अभ्यास करें। इससे
आपको संवेदनशीलता में दक्षता आ जाएगी। (४) यदि आप उक्त संवेदनीशलता प्राप्त नहीं कर पाते या बहुत कम
कर पाते हैं, तो निराश न हों, इसका लगातार अभ्यास करें जब तक इसकी प्राप्ति नहीं हो जाती। यह भी हो सकता है कि आप चौथे अभ्यास में सूक्ष्म संवेदनाओं को महसूस करने योग्य हो जाएं। मन को खुला रखने और ठीक प्रकार से ध्यान केन्द्रित करना जरूरी है।
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