________________
(३) अपने जीवन में विचार, वचन और क्रिया को धर्ममयी बनायें तथा
अपने चरित्र का उत्थान करें। (४) अपने दैनिक जीवन में दान देने की आदत डालें, किन्तु कुपात्रों
एवम् अपात्रों को दान न दें। (५) जहाँ तक संभव हो, द्विहृदय पर ध्यान-चिन्तन जिसका वर्णन
अध्याय ३ में दिया है, किया करें। (६) नकारात्मक निम्न श्रेणी की सोच जैसे क्रोध, अहंकार, झूठ, लालच,
दूसरों की हानि पहुंचाने की भावनादि से बचें। इसके द्वारा सौर जालिका चक्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिससे विभिन्न शारीरिक एवम् मानसिक रोग हो जाते हैं। इसका वर्णन भाग ४ में
दिया है। (७) दूसरों को क्षमा करना सीखें। सकारात्मक विचार जैसे दया,
करुणा, कना, मैत्री भाप रखें। (५) प्राणशक्ति उपचारक के लिए निर्देश (क) उपचार करने से पूर्व (१) रोगी के लिए निदेश क्रम संख्या ४ (क) (१) व (३) का आप भी
पालन करें। (२) उपचार करने से पहले अति विनयपूर्वक ईश्वर से प्रार्थना करें।
णमोकार मंत्र बोलकर एवम् पंचपरमेष्ठी को नमन करके निम्नवत
उच्चारण करें:"हे परमपिता, मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप मुझे अपना उपचार का उपकरण बना दें कि मैं आपके प्राणिक उपचार को ...........(रोगी के नाम का उच्चारण करें) तक प्रेषित कर सकूँ और अपना आशीर्वाद हम सभी को प्रदान करें। मैं यह प्रार्थना करता हूं कि इस उपचार में मेरे द्वारा किये गये किसी प्रकार की मन, वचन, काय की क्रिया का इस रोगी पर विपरीत प्रभाव न पड़े। पूर्ण विश्वास के साथ तदनुसार हो।"