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________________ (ख) उपचार होने से पहले ईश्वर से प्रार्थना निश्चिन्त होकर शनि के साथ बैठ जाये। णमोकार मंत्र बोलकर एवम् पंचपरमेष्ठी को नमन करके अथवा अपने विश्वासानुसार विनयपूर्वक ईश्वर को नमन करके, निम्न शब्दों का उच्चारण करे:-- "मैं अपनी स्वेच्छा से, पूरी तौर पर और कृतज्ञतापूर्वक समस्त प्राणिक उपचार मय उपचारात्मक ऊर्जाओं को स्वीकार करता हूँ| पूर्ण विश्वास के साथ. तद्नुसार हो।" (ग) उपधार के दौरान (१) ऊर्जा ग्रहणात्मक स्थिति में रहिए। इसके लिए रोगी बैठ जाये तथा अपने दोनों हाथों की हथेली को घुटनों पर अथवा सुविधानुसार रखें, किन्तु वे ऊपर की ओर खुली रहें। यह उसके हथेली के चक्र द्वारा ऊपर से ऊर्जा ग्रहण करने हेतु है। उसके बगल थोड़े से खुले रहें। अपनी आंखें बन्द कर ले एवम् बन्द ही रखे। (२) वह अपनी जीभ की नोक को तालु से लगाये अथवा चिपकाये | (३) वह अपने एक पैर को दूसरे पैर के ऊपर न रखे। (४) यदि पानी की ज्यादा प्यास लगे अथवा मूत्र-त्याग की इचछा हो, तो उपचारक से कहे। उपचारक इसके लिए उसको अनुमति दे (५) उपरोक्त (ख) में वर्णित स्वीकृति के शब्द अपने मन में दोहराते रहे। साथ-साथ यह भी सोचे कि वह ठीक हो रहा है अथवा ईश्वर से प्रार्थना करे तथा ईश्वर-भक्ति में इतने तन्मय हो जाए कि उसको अपनी सुधि ही न रहे। इनके अतिरिक्त किसी प्रकार के विचार नहीं आना चाहिए। यदि इस प्रक्रिया में नींद आने लगे तो सो जाए। ५.४३
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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