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आकार होने चाहिए, वरना इनमें स्थित वायवी आकृतियों को भ्रम उत्पन्न हो सकता है। कुछ रोगी वृत्ताकार प्राणिक उत्पादक द्वारा उत्पादित प्राण ऊर्जा को सहन नहीं कर पाते, इसलिये सम- चतुर्भुज अथवा त्रिकोण डिजायन ही इस्तेमाल करने चाहिए। देखिए चित्र ५.०२
जिस कमरे में उपचार करना हो. वहाँ समुचित रोशनदान (ventilator) होना चाहिए। ऐसे स्थानों से रोगग्रस्त ऊर्जा से अच्छे प्रकार से निष्कासन हो जाता है। इसके अलावा चन्दन की अगरबत्ती के जलाने से भी इस निष्कासन में सहायता मिलती है। (४) रोगी की उपचार-ग्राह्यता सुनिश्चित करना
चूंकि प्राण-ऊर्जा जो उपचारक प्रेषित करता है, उसके रोगी के शरीर के अन्दर ग्रहण होने के पश्चात ही वह रोग को दूर करने में कारण होती है, इसलिए यह आवश्यक है कि उसको रोगी ठीक से ग्रहण कर ले एवम् उसके प्रवाह में कोई अड़चन न आवे। इस उददेश्य की प्राप्ति के लिए रोगी को निम्नलिखित मार्गदर्शन उपचारक ट्वारा दिया जाना चाहिए :(क) उपचार के दौरान (१) सिल्क, चमड़ा, शुद्ध टेरीलीन, रबड़ की और हिंसात्मक वस्तुओं का
प्रयोग न किया जाय। ये प्राण ऊर्जा के कुचालक होते है। इसके लिए इन वस्तुओं द्वारा निर्मित मोजे, बटुआ, बैल्ट आदि को हटा देना चाहिए। सबसे अच्छे सूती वस्त्र होते हैं। ऊनी वस्त्रों के
पहनने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। (२) जूते, चप्पल आदि उतार दिये जायें। मोजे पहने जा सकते हैं। (३) जिन आभूषणों व अंगूठी आदि में पत्थर या नग हो, उनको उतार
ये सब प्राण ऊर्जा के अबाधित प्रवाह के लिए आवश्यक हैं।
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