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________________ अब भी आपके शरीर में कुछ अतिरिक्त ऊर्जा रह गयी होती है। इसको निकालने के लिए पुनः वही सब कसरतें कीजिये जो ("क") वायवी शरीर की सफाई" में वर्णित हैं। ऐसा न करने पर अत्यधिक सूक्ष्म ऊर्जा रह जाने के कारण लम्बे समय में शरीर को हानि पहुंच सकती है। उक्त ध्यान - चिन्तन को और भी अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए यह सामूहिक तौर पर अनेक लोगों द्वारा विश्व शांति के लिए एक साथ ही किया जाना चाहिए । (उक्त ध्यान - चिन्तन श्री चोआ कोक सुई के द्वारा बतायी गई विधि के अनुसार तो है, किन्तु उसमें थोड़ा सा संशोधन किया गया है। इसमें मुख्यतः 'पृथ्वी ग्रह' के स्थान पर 'विश्व' और लोग के स्थान पर 'प्राणी है ।) - नोट- द्विहृदय पर ध्यान - चिन्तन का उक्त विवरण काफी विस्तारमयी हो गया है जो अनिवार्य था । किन्तु इस दौरान आंखें बन्द रहने के कारण, इसको उस समय पढ़ना सम्भव नहीं होगा । इसलिये इसको क्रमवार कण्ठस्थ कर लें, यद्यपि यह थोड़ा सा कठिन हो सकता है । अथवा बेहतर होगा कि इसका किसी ऑडियो टेप (audio tape) पर रिकार्डिंग कर लें। फिर ध्यान चिन्तन के समय उसका प्ले बटन ( Play Button ) दबाकर इस वर्णन को सुनते हुए तद्नुसार ध्यानचिन्तन करें। (3) द्विहृदय पर ध्यान - चिन्तन के लाभ (क) सामान्य व्यक्ति तथा रोगी के लिए बु (9) ऊर्जा अथवा वायवी शरीर शक्तिशाली बनता है। उसकी गुणवत्ता बढ़ती है और अधिक शुद्ध हो जाती है। (२) ऊर्जा के आभामण्डल का आकार (Aura) बड़े हो जाते हैं। (3) वायवी शरीर का प्रभाव बढ़ता है (its penetrating effect becomes more) (४) ऊर्जा चक्र अधिक सक्रिय हो जाते हैं, जिसके कारण भौतिक शरीर अधिक स्वास्थ्यकारक होता है और मानसिक योग्यता बढ़ जाती है । ५.३१
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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