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________________ निरन्तर प्रवाहित हो रहा है। महसूस कीजिए और दृश्यीकरण कीजिए कि वह चमकीला रोशनी का द्रव आपके मस्तिष्क के बांए भाग, दाएं भाग, पिछले भाग में, अगले भाग में, मध्य भाग में तथा पिनीयल ग्रंथि में समा रहा है और समस्त मस्तिष्क चमकीला हो गया है और जीवन शक्ति से भर गया है।, चमकीला होने का और जीवन शक्ति भरने का एहसास और दृश्यीकरण बारी-बारी से इसी प्रकार क्रमवार मस्तिष्क के पिछले भाग से समस्त रीढ की हड्डी, पाधा, पीसूर ग्रंथि आंखों कों कनपटियां, मुंह के अन्दर, समस्त चेहरे, गला व गर्दन, फेंफड़े, हृदय व थायमस ग्रंथि, आमाशय-अग्न्याशय- यकृत, पित्ताशय व प्लीहा, छोटी व बड़ी आंतें, गुर्दे व अधिवृक्क ग्रंथियां, मूत्राशय व जननांग, कूल्हे, बांये व दांये पैर पर फिर सिर से पैरों तक, बांह - हाथ व अंगुलियों के पोरों तक करें । महसूस कीजिये एवम् दृश्यीकरण कीजिये कि आपका समग्र शरीर चमक रहा है और जीवन शक्ति से भर गया है। T अब मानसिक रूप से निम्न कहिए: "मैं दिव्य प्रकाश से भर गया हूँ और मैं जीवन शक्ति से भरा हुआ हूँ, | मैं समग्र हूँ.. I मैं प्रसन्न हूँ . । मेरा जीवन समस्त अच्छाइयों एवम् सुन्दरता से भरा हुआ है ।, मैं दिव्य ज्ञानमयी हूँ, | मैं | मैं दैवीय शक्तिमान हूँ दैवीय स्नेहमयी हूँ, · | मैं ईश्वर का बालक हूँ धन्यवाद सहित एवम् पूर्ण विश्वास के साथ।" अब आपको अतिरिक्त ऊर्जा का जो उक्त ध्यान के दौरान आती हैं, त्याग समान अपने सामने दृश्यीकरण करें। दोनों हथेलियों को खोलकर विश्व के विश्व को प्रेम, शान्ति, प्रचुरता एवम् फिर अपने देश को प्रेम, फिर करना है । इसके लिए पुनः विश्व का पहले के अपने दोनों हाथ सीने के स्तर तक लाएं और सामने रखें। सद्भावना का आशीर्वाद दें । शान्ति, प्रचुरता और सद्भावना का आशीर्वाद दें । अपने धार्मिक समुदाय (community) को प्रेम, शांति, प्रचुरता और आत्मिक उत्थान का ५.२९
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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