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जो उत्तम, मध्यम और जघन्य पात्रों को औषधि, आहार, मध्यम ऋद्धिधारक देव अभय और ज्ञान दान देते हैं दस पूर्वधारी श्रमण
सौधर्म स्वर्ग से सर्वार्थसिद्धि
पर्यन्त चौदह पूर्वधारी श्रमण
लान्तव स्वर्ग से |
सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त चार प्रकार के दान में प्रवृत्त, कषायों से रहित और पंच | सौधर्म स्वर्ग से अच्युत परमेष्ठियों की भक्ति से युक्त देशव्रत संयुक्त जीव स्वर्ग पर्यन्त लज्जा और मर्यादा रूप मध्यम भावों से युक्त तथा मध्यम ऋद्धिधारक देव उपशम प्रभृति भावों से संयुक्त जीव सम्यकत्व, ज्ञान, आर्जव, लज्जा एवम शीलादि से परिपूर्ण | अच्युत कल्प पर्यन्त स्त्रियाँ जिनलिंगधारी अभव्यजीव जो उत्कृष्ट तप के श्रम से | उपरिम ग्रैवेयक पर्यन्त परिपूर्ण हैं। पूजा, व्रत, तप, दर्शन, ज्ञान और चारित्र से सम्पन्न उपरिम ग्रैवेयक से आगे निर्ग्रन्थ भव्य जीव
सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त मन्दकषायी एवं प्रिय बोलने वाले कितने ही चार्वाक भवनवासी देवों को आदि (साधुविशेष)/परिव्राजक
| लेकर ब्रह्म कल्प पर्यन्त पंचेन्द्रिय संज्ञी तिर्यन्च अकाम निर्जरा से युक्त और मन्द | सहस्त्रार कल्प पर्यन्त कषायी अनादि से प्रकटित संज्ञाओं एवं अज्ञान के कारण अपने अल्पर्द्धिक देव चारित्र में अत्यन्त क्लिश्यमान भाव संयुक्त कई जीव ।
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