________________
अपने हृदय केन्द्र से विश्व को दैवीय शान्ति का आशीर्वाद दीजिए। जहाँ घृणादि है. वहाँ मैं अपने प्रेम से उसे दूर कर सकूँ . . . . . . . |
फिर पुनः गुलाबी रंग की ऊर्जा को विश्व को लपेटते हुए दृश्यीकृत करें। फिर निम्न भावना करें :
जहाँ क्षति हो, (Injury) वहाँ क्षमा हो- विश्व को क्षमा भाव से आशीर्वाद दें। ... . . . . . . . . . . . . . जहां संशय है, वहाँ विश्वास हो।. . . . . . . . जहाँ निराशा हो, वहाँ आशा हो- जरूरतमंद प्राणियों को नवीन आशा एवम् बेहतर जीवन से आशीर्वादित करें। . . . . . . . . . . . . . . . . जहाँ अज्ञान हो, वहाँ ज्ञान हो।. . . .
. . . . . जहाँ उदासी हो, वहाँ प्रसन्नता हो- विश्व को आनन्द से आशीर्वादित करें।. . . . . . . . . . . . . . . . विश्व में लोगों को मुस्कराते हुए एवम् आनन्दमयी होते हुए दृश्यीकरण करें. . . . . . . . . . . . . . . ।
फिर पुनः ईश्वर से प्रार्थना करें कि "हे दैवीय मालिक? कुछ ऐसा हो किमैं दूसरों को सान्त्वना दूं, चाहे कोई मुझे सान्त्वना दे या न दे।. . . . . . . . . मैं दूसरों को समझ स., चाहे कोई मुझे समझ सके या न समझ सके।. . . . . मैं दूसरों से मैत्री भाव रचू, चाहे कोई मुझसे मैत्री भाव रखे या न रखे।". . . .
क्योंकि देने से ही हमें प्राप्त होता है। क्योंकि दूसरों को क्षमा करने से ही स्वयं को क्षमा मिलती है। क्योंकि मृत्यु से ही नया जीवन मिलता है। (घ) ब्रह्म चक्र को उत्तेजित करना
अब आप सिर पर अवस्थित ब्रह्म चक्र को कई पलों तक दबायें और उस पर ध्यान केन्द्रित करके उत्तेजित करें। अपने चक्र से सफेद चमकीली दिव्य रोशनी को विश्व की ओर जाते हुए एवम् उसके चारों ओर से प्रेम च करुणा से लपेटते हुए दृश्यीकृत करें। यह भावना भायें कि -
"समस्त विश्व को प्रेम व करुणा का आशीर्वाद प्राप्त हो।