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तीसरे, सोचिए कि क्या आप अपनी वाणी और क्रियाओं द्वारा लोगों को भ्रमित तो नहीं कर रहे हैं? . . . . . . . . . . . . . . . . क्या आप जान बूझकर झूठ बोलते हैं या जो आप नहीं है, वह बनने का स्वांग करते हैं? . आप अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु दूसरों से सत्य को छुपाते फिर रहे हैं?.. .. . . . .निश्चय कीजिए कि आज से अपनी वाणी और क्रियाओं से अपने और दूसरों के प्रति सत्यता बतेंगे। इस निश्चय का दृढीकरण करने के लिए आप अपने जीवन की उन रहस्यों (secrets) का आंतरिक निरीक्षण करें जिनके द्वारा अपने को कसूरवार समझते रहे हों। मानसिक रूप से इसको सम्बन्धित व्यक्ति को बताकर एवम् उससे क्षमा मांगकर, अपने को इस भावना से मुक्त कीजिए । . . . . . . . . . . . . . . . . अपने से एवम् दूसरों से सत्यता का व्यवहार करने के अनुभव द्वारा शान्ति प्राप्त करने का आनन्द महसूस करें . . . . . . . . . . . . . ।
अब इस समय, आप सम्पूर्ण विश्व को एवम् जीवों को स्नेह और दया का आशीर्वाद देने हेतु अपने को तैयार कर चुके हैं . . . . . .!
अपने हृदय की ऊर्जा के केन्द्र को उत्तेजित करने के लिए, अपने सीने के मध्य भाग पर अगले हृदय चक्र को कुछ पलों के लिये छुएं और कुछ समय तक उस पर ध्यान लगाइये। . . . . . . . . . . . . . . . जीवन के उन क्षणों का स्मरण कीजिए, जब आपने प्रसन्नता, दया, प्रेम, शान्ति अथवा आनन्द का अनुभव किया हो, जो आनन्द दूसरों की सेवा करने, मित्रों एवम् अन्य की सहायता प्रदान करने, किसी से प्रेम करने, साधु संगति अथवा ईश्वर की भक्ति अथवा निकटता का हो सकता है . .
आप अब दया भाव को विश्व में सबके साथ बांटने जा रहे हैं। अपने सामने विश्व को एक इंच व्यास के गेंद के रूप में दृश्यीकृत कीजिए। इसका दृश्यीकरण कीजिए कि आपके हृदय चक्र लाबी रंग की प्रेममयी ऊर्जा विश्व की ओर जाकर उसको चारों ओर से लपेट रही है। विश्व को देखकर मुस्कराइये . . . . . . . . |
अब निम्नवत प्रार्थना ईश्वर से कीजिए। "हे सर्वशक्तिमान, कृपया मुझे शान्ति का दैवीय उपकरण बनाईयेगा।"
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