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________________ क्षमता से कहीं अधिक होती है। यदि आप इस दौरान उठ जाते हैं, तो उससे आपके शरीरागों को हानि पहुंच सकती है आपका सिर भारी हो सकता है आदि । सब ओर से निश्चिन्त होने के पश्चात्, आप पद्मासन अर्ध- पद्मासन, सुखासन अथवा कुर्सी पर आरामपूर्वक बैठें, जिस स्थिति में भी आप निराकुलता महसूस कर सकें, किन्तु प्रत्येक दशा में रीढ़ की हड्डी सीधी रहनी चाहिए और यदि आप कुर्सी पर बैठे हों तो पीठ कुर्सी से नहीं लगनी चाहिए। दोनों हाथों को अपने दोनों जांघों पर रखें और हथेली ऊपर की ओर फैली खुली रहें। हाथ की हथेली के मध्य में हाथ का ऊर्जा चक्र अवस्थित है, जैसा भाग ४ में लिखा है। इस चक्र के माध्यम से बाहर से ऊर्जा प्राप्त होती है। अब जीभ की नोक को तालु से छुये रहें या चिपका लें। इससे दोनों ऊर्जा के मैरिडियन्स (meridians) का अन्तर्सम्बन्ध पूरा (interconnection) होकर, ऊर्जा के प्रवाह की तेज गति हो जायेगी (देखिये चित्र ४.०८ जिसमें दर्शाया गया है कि जीभ को तालु से लगाने से एक प्रकार का ऊर्जा का स्विच बन्द हो जाता है ) । अपनी दोनों आंखों को बन्द कर लें और इस ध्यान चिन्तन के अंत तक बन्द रखे रहिये । इस लेख में जहाँ आपको रुकना है । ये चिन्ह आया है, वहाँ वहाँ तीन बार धीमे-धीमे गहरी आरामदायक अथवा ढीले तौर पर सांस लें। इसके लिए, गहरी सांस लीजिए, धीरे-धीरे सांस निकालिये पुनः, सांस लीजिए, धीरे-धीरे सांस निकालिये पुनः, सांस लीजिए, धीरे -धीरे सांस निकालिये अपने दिमाग को रिथर कीजिए और मन ही मन ईश्वर के आशीर्वाद के लिए स्तुति या प्रार्थना करें। आप अपनी प्रार्थना या स्तुति स्वयं तैयार कर सकते हैं, अथवा निम्नलिखित स्तुति करें: "हे परम पिता, मैं विनम्रता के साथ सुरक्षा मार्गदर्शन राहायता और प्रदीपन के लिए आपके दैवी आशीर्वाद की प्रार्थना करता हूँ । और पूरे पूरे विश्वास के साथ धन्यवाद देता हूँ । ५.२२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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