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से उस अंग अथवा अस्थि संधि से संबंधित वायव्य अंग को वातावरण से स्वस्थ ऊर्जा प्राप्त होती है। इस सिद्धान्त के आधार पर उक्त कसरतों द्वारा क्रमशः आंखों, गर्दन, कांख, कमर, पेट के सभी आन्तरिक अंग, पैरों की ऐड़ी, घुटने, हथेलियां, कलाईयाँ, कंधे, कोहनी तथा हाथों की संगलियाँ, ..... फैकड़ों तथा सम्पूर्ण शरीर से संबंधित वायव्य अंगों/शरीर से पहले खराब तथा उपयोग हुई ऊर्जा बाहर निकलेगी, फिर स्वस्थ ऊर्जा इनको प्राप्त होगी। इस तरह एक प्रकार से सभी अस्थि-संधियों व शरीर से संबंधित वायव्य अंग/शरीर की सफाई होकर स्वस्थ दशा में आ जायेंगे। कसरत से हल्का रोगग्रस्त भूरा पदार्थ या प्रयोग की गई प्राणशक्ति वायवी शरीर से बाहर हो जाएगी। शारीरिक कसरत से प्राणशक्ति का घनापन भी कम होगा। इस प्रकार की कसरतें यदि द्वि-हृदय पर ध्यान-चिंतन से हटकर वैसे ही साधारण तौर पर की जाये, तो भव रोगों को छोड़कर अन्य रोगों की समस्या काफी
कम हो जायेगी। ऊपर लिखा वर्णन बहुत लम्बा हो गया है, किन्तु जब आप उक्त कसरतों का अभ्यास करेंगे, तो सभी कसरतों में पांच सात मिनट से अधिक शायद ही लगे। इन कसरतों को करने के तुरन्त बाद अथवा थोड़े समय बाद भी द्विहृदय पर ध्यान-चिंतन किया जा सकता है। उपक्रम (ख) ईश्वर के आशीर्वाद के लिये प्रार्थना करना
उक्त कसरतों के बाद लगभग चालीस मिनट का समय द्विहृदय पर ध्यान-चिंतन में लगेगा। इस दौरान आप सभी सांसारिक चिंताएं छोड़ दें। सभी मोबाइल फोन इत्यादि बंद कर दें। किसी भी प्रकार के फोन आदि को न सुनें, किसी दरवाजे की घंटी आदि को अनसुना कर दें। घर में लोगों को कह दें कि चाहे आंधी आये या तूफान, आपके ध्यान में कोई बाधा न डाले। इस ध्यान-चिंतन के दौरान, उच्च स्तर की काफी अधिक मात्रा में ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है, जो उसकी