SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 492
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११) सीधे खड़े होकर, हाथों को सामने फैलाकर, दोनों हाथों को एक साथ मुठ्ठी बांधते हुए कंधे तक लायें, फिर यथावत स्थिति में आयें। ऐसा कुल मिलाकर बारह बार करें। (१२) यदि कोई अन्य कसरत अभ्यासकर्ता करना चाहे, तो करे । (१३) सीधे खड़े होकर अपने पैरों में सुविधानुसार थोड़ी अधिक दूरी रखते हुए सामने हाथों को फैलायें। फिर सांस खींचते हुए, दोनों हाथों को अपने सिर के पीछे ले जायें, साथ ही आप भी पीछे अधिक से अधिक अपने को झुकायें। फिर थोड़ा सा रुककर सांस को निकालते हुए, दोनों हाथों से अपने दोनों पैरों को छूने का प्रयास करें (यदि पैर न छू सकें. तो कोई बात नहीं)। यहाँ पर थोड़ा रुकें। इस स्थिति से प्रारम्भ करते हुए, फिर सांस खींचते हुए दोनों हाथों को पहले के समान सिर के पीछे ले जायें, थोड़ा रुकें, फिर सांस निकालते हुए फिर नीचे पैरों को छूने की कोशिश करें। ऐसा कुल सात बार करें। फिर पहले के समान दोनों हाथों को सिर के पीछे ले जायें, फिर रुके और पूर्ववत् सीधे खड़े हो जायें। सात बार उट्ठक-बैठक करें। नोट- (१) किसी भी अंग में कोई पीड़ा हो अथवा कोई समस्या हो, अथवा उसका इतिहास हो तो उस अंग की कसरत न करें, अन्यथा हानि हो सकती है। (२) जो क्रम उपरोक्त वर्णित है, उसी क्रम से ही कसरत करें। (३) गोलाकार गति में घड़ी की दिशा में घुमाने से, समानान्तर स्तर (horizontal plane) गति में दांये ओर घूमने से और लम्बवत (vertical plane) गति में सामने अपनी ओर अंग को लाने से उस अंग अथवा अस्थि संधि (bone joint) से संबंधित वायव्य अंग से खराब एवम् उपयोग हुई प्राण शक्ति ऊर्जा बाहर निकलती है। इसी प्रकार वृत्ताकार गति में घड़ी की उल्टी दिशा में घुमाने से, समानान्तर स्तर गति में बांये ओर घूमने से और लम्बवत स्तर में गति में पीछे की ओर अंग को ले जाने १४) सात व
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy