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जो इन्हीं क्रम में की जानी चाहिए। यह बन्द कमरे या अधिक अच्छा हो, खुले स्थान अथवा दोनों जगह की जा सकती हैं। (१) सीधे खड़े होकर अपने दोनों पैरों में सुविधानुसार दूरी रखकर, अपने दोनों
हाथों को कमर पर रखें। सामने की ओर देखते हुए अपने आँखों की पुतलियों को घड़ी की दिशा में तीन बार दीवाल पर या आकाश पर बड़े से बड़ा गोल दायरा बनाते हुए घुमाइये, फिर घड़ी की उल्टी दिशा में इसी प्रकार तीन बार पुतलियों धुमाइये। सावधानी रखें के केवल पुतलियां घूमना चाहिए, न कि आंख, सिर या गर्दन। फिर उक्त प्रकार से तीन-तीन बार पुतलियों को क्रमशः घड़ी की दिशा तथा उल्टी दिशा में घुमायें। फिर तीन-तीन बार फिर तीन-तीन बार। इस प्रकार कुल बारह बार-बारह दफा पुतलियाँ घड़ी की दिशा में तथा उल्टी दिशा में घूमेंगी। काफी अभ्यास हो जाने पर, एक ही क्रम में लगातार क्रमशः बारह दफा घड़ी की दिशा में व लगातार बारह दफा घड़ी की उल्टी दिशा में पुतलियां घुमायी जा सकती हैं। उक्त (१) में वर्णित स्थिति में खड़े रहते हुए, अपनी गर्दन को पूर्णरूपेण घड़ी की दिशा में तीन बार, फिर घड़ी की उल्टी दिशा में तीन बार घुमायें । फिर उक्त क्रम (१) में वर्णन की तरह ही चार क्रमों में कुल बारह-बारह बार गर्दन क्रमशः घड़ी की दिशा में और घड़ी की उल्टी दिशा में घुमाये। काफी अभ्यास के पश्चात, यह भी लगातार बारह-बारह बार घड़ी की दिशा
व घड़ी की उल्टी दिशा में एक ही क्रम में घुमायी जा सकती है। (३) सीधे खड़े रहते हुए व अपने दोनों पैरों के बीच में सुविधानुसार दूरी रखते
हुए. अपने दोनों हाथों को बारह बार लम्बवत स्तर (vertical plane) में घड़ी की दिशा में घुमायें, फिर बारह बार घड़ी की उल्टी दिशा में धुमायें। उक्त प्रकार खड़े रहते हुए तथा हाथों को सामने की ओर फैलाते हुए, सीधे हाथ की ओर अपनी कमर को जल्दी से घुमायें, फिर एक क्षण रुककर वापस आते हुए बांये ओर की ओर जल्दी से घुमाकर, फिर एक क्षण रुककर वापस आयें। इसी क्रम को कुल बारह-बारह बार करें।