________________
और दृश्यीकरण | ये पद्धतियां यद्यपि प्रभावकारी हैं, किन्तु साधारणतः अधिक तेजी से कार्य नहीं करती हैं। द्विहृदय ध्यान चिंतन प्रभावशाली पद्धतियों में से एक है। इन चक्रों को अधिक प्रभावशाली और तेजी से कार्य करने के लिये प्रेम दया के आधार पर ध्यान - चिंतन करें तथा पूरे विश्व को प्रेम दया से आशीर्वाद दें। पूरे विश्व को प्रेम दया से आशीर्वाद देने के लिये हृदय और ब्रह्म चक्र का प्रयोग करने पर वे आध्यात्मिक शक्तियों के माध्यम बनते हैं और इस प्रक्रिया में उत्तेजित हो जाते हैं। दूसरे को आशीर्वाद देने के फलस्वरूप आपको भी बदले में आशीर्वाद मिलेगा। दूसरों को कुछ देने से ही आपको कुछ प्राप्त होगा । यही नियम है ।
१८ वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को द्विहृदय पर ध्यान - चिंतन नहीं करना चाहिए क्योंकि उसका शरीर अधिक मात्रा में सूक्ष्म ऊर्जा को जमा करने के योग्य नहीं होता है। इससे लम्बे समय बाद लकवा भी हो सकता है। हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, ग्लूकोमा से पीड़ित व्यक्ति भी इस ध्यान को नहीं करें क्यांकि इससे उनकी बीमारी और बढ़ सकती है। द्विहृदय पर ध्यान चिंतन करने से न केवल हृदय चक्र और ब्रह्म चक्र उत्तेजित होते हैं बल्कि दूसरे चक्र भी उत्तेजित हो जाते हैं। इससे अभ्यासकर्ता के नकारात्मक व सकारात्मक दोनों प्रकार के चरित्रगुण अधिक विकसित व उत्तेजित होंगे। इस कारण से जो व्यक्ति इस ध्यान का प्रतिदिन अभ्यास करते है, उनके लिए यह बहुत जरूरी है कि प्रतिदिन स्व-चिंतन द्वारा अथवा परमात्म-भक्ति द्वारा अपने मन की शुद्धता या चरित्र-निर्माण का भी अभ्यास करें। इस ध्यान की सम्पूर्ण विधि निम्न प्रकार है।
२. द्विहृदय पर ध्यान चिंतन की विधि
उपक्रम ( क ) - वायवी शरीर की सफाई
शारीरिक व्यायाम द्वारा वायवी शरीर की सफाई करें। वायवी शरीर की सफाई और ऊर्जन के लिए पांच-छह मिनट व्यायाम करें। व्यायाम से रोगग्रस्त हल्का भूरा पदार्थ या उपयोग की हुई प्राणशक्ति वायवी शरीर से बाहर हो जायेगी। शारीरिक कसरत से प्राणशक्ति का धनापन भी कम होगा क्योंकि द्विहृदय पर ध्यान चिंतन करने से वायवी शरीर में बहुत अधिक सूक्ष्म ऊर्जा पैदा होती है अथवा आती है। यदि बगैर वायवी शरीर की सफाई किये हुए, द्विहृदय पर ध्यान चिंतन किया जायेगा, तो हानि हो सकती है और मौलिक प्रतिक्रिया हो सकती है। अपेक्षित शारीरिक कसरतें निम्न हैं
५.१७