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________________ क्षेत्र को धुंधलके प्रकाश से भरा हुआ महसूस कर सकते हैं। यह अनुभव संतों के लिए सामान्य सी बात है। चित्र ५.०१ द्विहृदय पर चिंतन के समय आकाश से उतरती हुई दैवी ऊर्जा ईसाई परंपरा में इसे पवित्र आत्मा का आगमन, ताओवादी योग में स्वर्ग की प्राणशक्ति या ऊर्जा का आगमन; कबालिक परंपरा में प्रकाश का स्तंभ; भारतीय योग में प्रकाश का आध्यात्मिक सेत या अंत:करण कहा जाता है। ब्रह्म चक्र को तभी समुचित रूप से उत्तेजित किया जा सकता है जब पहले हृदय चक्र को पूरी तरह उत्तेजित किया जाय। हृदय चक्र ब्रह्म चक्र की अनुकृति होता हैं। जब आप हृदय चक्र को देखते हैं तब वह ब्रह्म चक्र की तरह दिखाई देता है जिनकी बारह स्वर्णिम पंखुड़ियां होती हैं। हृदय –चक्र ब्रह्म-चक्र का निचला संदेशवाहक होता है। ब्रह्म चक्र दैवी चमक और दैवी प्रेम अथवा अध्यात्म का केन्द्र होता है, जबकि हृदय चक्र उच्च भावनाओं का केन्द्र होता है जैसे सहानुभूति, प्रसन्नता, प्रेम, करुणा, दया आदि। इन दोनों चक्रों के उत्तेजित करने के कई तरीके हैं जैसे हठयोग, योग-श्वसन, मंत्र या शब्दों की शक्ति
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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