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________________ १. सामान्य द्वि-हृदय पर ध्यान-चिंतन वह पद्धति है जिसमें ब्रह्माण्डीय चेतना या प्रदीपन पर ध्यान दिया जाता है। यह विश्व सेवा का एक रूप भी है क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में प्रेम व दया के आशीर्वाद के कारण एक सीमा तक प्रसन्नता व समरसता लायी जा सकती है। द्विहृदय का चिंतन उस नियम पर आधारित है कि जहाँ कुछ प्रमुख चक्र चेतना के एक विशेष स्तर तक पहुंचने के लिये प्रवेश द्वार का कार्य करते हैं। प्रदीपन या ब्रह्माण्डीय चेतना को प्राप्त करने के लिये ब्रह्म चक्र को समुचित रूप से उत्तेजित करना आवश्यक होता है। हृदय-चक्र भावनात्मक हृदय का केन्द्र होता है और ब्रह्मचक्र दैवी-हृदय का केन्द्र एवम् दिव्य ऊर्जा का स्रोत होता है। इस प्रकार हृदय -चक्र और ब्रह्म चक्र दोनों को मिलाकर द्वि-हृदय कहते हैं। जब ब्रह्म चक्र को समुचित रूप से उत्तजित किया जाता है तो इसकी बारह आंतरिक पंखुड़ियां ऊपर की ओर सुनहरे कटोरे के रूप में खिलती हैं। जब चक्र बहुत अधिक उत्तेजित होता है तब सिर के चारों ओर आभामण्डल का विकास होता है। इसी कारण संतों के सिर के चारों ओर आभामंडल होता है। आध्यात्मिक विकास की अलग-अलग शक्ति होने के कारण आभामंडल की चमक और आकार भी अलग-अलग होते हैं। भगवान का प्रभामण्डल जो करोड़ों सूर्यों से भी अधिक प्रभावाला होता है, कदाचित् इसी सिद्धान्त पर आधारित रहा होगा और प्रतिमा जी के पीछे भामण्डल भी इसी प्रभा के प्रतीक के रूप में स्थापित होता होगा। जब कोई व्यक्ति द्विहृदय पर ध्यान-चिंतन करता है तब दैवी ऊर्जा उसके शरीर में प्रवेश करती है और उसका शरीर दिव्य प्रकाश, प्रेम और शक्ति से भर जाता है। तब अभ्यासकर्ता इस दिव्य शक्ति का माध्यम बन जाता है। ताओवादी योग में इस दैवी शक्ति को "स्वर्ग की प्राणशक्ति" कहा जाता है, कबाला धर्म में इसे "प्रकाश स्तम्भ" कहा जाता है। यह वही प्रकाश स्तम्भ है जिसे दिव्यदर्शी देख पाते हैं। भारतीय योगी इसको आध्यात्मिक पुल या "अंतःकरण' कहते हैं। ईसाई लोग इसे "पवित्र आत्मा का अवतरण" मानते हैं। देखिये चित्र ५.०१। आध्यात्मिक ज्ञान के इच्छुक जब इस प्रकार का ध्यान चिंतन करते हैं तो वे कुछ समय के लिये अपने चारों ओर कोहरा या धुंधलका या कभी चकाचौंध करने वाला प्रकाश या अपने सिर के 14.१५
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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