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________________ अध्याय - ३ ध्यान - चिंतन MEDITATION (क) भूमिका ध्यान- चिंतन द्वारा ऋषिगण अपने आत्मा की उन्नति करते एवम् कर्मों को भस्म करते हैं। जहाँ इसके धार्मिक क्षेत्र में अनेक लाभ हैं, वहीं इसके द्वारा अनजाने में शरीर की अनेक व्याधियों से रक्षा भी हो जाती है एवम् शरीर के रोग एवम् मनोरोग स्वयमे ही कुछ अंश तक ठीक हो जाते हैं। इस भाग में रोगों के उपचार के वर्णन में इसका कई जगह जिक्र आया है। ध्यान से ऊर्जा शरीर की एवम् आभा मण्डल की गुणवत्ता और शक्ति काफी बढ़ जाती है। इस अध्याय के (ख) भाग में धार्मिक ध्यान, (ग) भाग में वैकल्पिक रूप में द्वि-हृदय पर ध्यान-चिंतन और (ध) भाग में ध्यान-चिंतन का वैज्ञानिक विश्लेषण दिया है। (ख) धार्मिक ध्यान भाग १ के अध्याय ५ में इसका अथवा धर्मध्यान का वर्णन आया है। संस्थान विचय के अन्तर्गत पिण्डस्थ ध्यान की विधि भी बतायी गयी है। परमेष्ठी वाचक मंत्र अथवा पिण्डस्थ धर्म ध्यान के द्वारा, विधिपूर्वक कम से कम लगभग चालीस मिनट इस प्रकार ध्यान करें कि आपको अपनी भी सुध बुध न रहे और दिव्य अलौकिक आनन्द में मग्न हो जाएं। इस प्रकार का आनन्द आप परमेष्ठी के ध्यान या पिण्डस्थ धर्मध्यान की पांचवी तत्त्व धारणा में स्व-आत्मा के चिन्तन के समय प्राप्त कर सकते हैं। मन को किसी भी अन्य विषय में न भटकने दें। (ग) द्वि-हृदय पर ध्यान चिंतन- Meditation on Twin Hearte ध्यान का उद्देश्य ईश्वर से तारतम्यता होना चाहिए। याद रखिये कि परमात्मा की सत्ता आपके स्वयं के अन्दर है। ५.१४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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