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________________ अथवा वे मर जाते हैं और पेड़ मुझ सकते हैं। इस कारण इस गंदे नमक के घोल को फ्लश (flush) करना ही श्रेयस्कर है। (ग) कई सुगन्धित अगरबत्तियों को जलाकर- इसकी विधि का वर्णन आगे अध्याय २६ के क्रम १ (२) में किया गया है। (घ) हरे रंग की आग का गोला बनाकर- इसके लिए पहले हाथों को संवेदनशील (sense; करणे, पिर बालारण से प्राण-शक्ति ऊर्जा एक हाथ से ग्रहण करके, दूसरे हाथ से जमीन की ओर प्रेषण करते हुए उसको यह निवेदन करें कि वह एक हरे रंग की आग का गोला जिसका व्यास तीन फुट से ज्यादा न हो, बनाये। इस निवेदन को तीन बार दोहरायें। चूंकि भू-ऊर्जा भूमि से लगभग डेढ़ फीट रहती है, इसलिए तीन फीट से कम का गोला के जांच में भू-ऊर्जा द्वारा भ्रम उत्पन्न हो सकता है। अधिक व्यास का गोला अव्यवहारिक होगा। फिर जांच द्वारा यह सुनिश्चित करें कि उक्त गोला बन गया है। जांच करने तथा प्राणशक्ति को हाथ द्वारा ग्रहण व प्रेषण करने की विधि आगे अध्याय ४ में दी गयी है। गोला बन जाने के पश्चात् उपचार के दौरान, उपचारक को अपनी इच्छा शक्ति द्वारा रोगी की रोगग्रस्त ऊर्जा को उस आग के गोले की ओर हाथ झटकते हुए फैंकना चाहिए तथा उसको यह आदेश देना चाहिए कि वह उसमें जाकर नष्ट हो जाये। उपचार करने के पश्चात, वह फिर से वातावरण से उसी प्रकार प्राणशक्ति ऊर्जा को ग्रहण करके, उसको आग का गोला बनाने के लिए धन्यवाद दे तथा उसको निवेदन करे कि अब वह उसको नष्ट कर दे। इसको भी तीन बार उच्चारण करें। फिर जाँच द्वारा यह सुनिश्चित कर ले कि आग का गोला गायब हो गया है। इस प्रकार के उच्चारण वचन द्वारा अथवा मन में बोलते हुए किया जा सकता है। सत्तर प्रतिशत ईथाइल या आइसोप्रोपाइल एल्कोहल (Ethyl or Isopropyl Alcohol) में- यह एक प्रकार की शराब होने के कारण, इसकी अनुशंसा नहीं की जाती है। यह काफी मंहगी भी होती है।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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