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इन सभी लोकांतिक देवों की संख्या = ४,०७,८०६ है। लौकांतिक देवों में प्रत्येक के शरीर की ऊँचाई ५ हाथ प्रमाण है। अरिष्ट नामक देव की आयु ६ सागर है (यह आयु त्रिलोकसार गाथा ५४० की अपेक्षा से है, मतान्तर से यह आयु तिलोयपण्णत्ती गाथा ६६३ की अपेक्षा ८ सागर ही है।), बाकी सभी देवों की आयु ८ सागर है। ये लौकान्तिक देव, देवी आदि परिवार से रहित, परस्पर में हीनाधिकता से रहित, विषयों से विरक्त, देवों में ऋषि के समान होने से देवर्षि कहलाते हैं। बारह भावनाओं के चितवन में तल्लीन, सभी इन्द्रों और देवों से पूज्य हैं। चौदह पूर्व रूप श्रुत ज्ञान के धारी हैं। तीर्थंकरों के निष्क्रमण कल्याणक में सम्बोधनरूप नियोग को पूरा करने के लिए और भक्ति भाव स्तुति करने के लिए जाते हैं, अन्य कल्याणकों में नहीं जाते हैं। वे नियम से एक भव मनुष्य को लेकर मोक्ष चले जाते हैं। ये शुक्ल लेश्याधारी होते हैं और सम्यग्दर्शन से युक्त होते हैं। जो श्रमण स्तुति और निन्दा, सुख और दुख में तथा बन्धु और शत्रु वर्ग में समान हैं, बहुत काल पर्यन्त बहुत प्रकार के वैराग्य को भाकर संयम सहित मरण करते हैं, देह के विषय में निरपेक्ष हैं, तीनों योगों को वश में करने वाले हैं तथा निर्ममत्व, निरारम्भ और निरवद्य हैं, संयोग और वियोग में, लाभ और अलाभ में तथा जीवन और मरण में समदृष्टि होते हैं, संयम, समिति, ध्यान एवं समाधि के विषय में जो निरन्तर अप्रमत्त (सावधान) रहते हैं तथा तीव्र तपश्चरण से संयुक्त हैं और पांच महाव्रतों सहित पांच समितियों का स्थिरता पूर्वक पालन करने वाले और पांचों इन्द्रिय विषयों से विरक्त ऋषि हैं, वे ही लौकान्तिक देवों में जन्म लेते हैं। वैमानिक देवों की संख्या स्वर्ग का नाम
संख्या | सौधर्म -ईशान जगच्छ्रेणी (J) Xघनांगुल (G) का तृतीय वर्गमूल = JXGie
सानत्कुमार-माहेन्द्र जगच्छ्रेणी - जगच्छ्रेणी का ग्यारहवां वर्गमूल = J =JM2048 | ब्रह्म–ब्रह्मोत्तर | जगच्छ्रेणी में जगच्छ्रेणी का नवां वर्गमूल = 1+111512 लान्तव –कापिष्ठ जगच्छ्रेणी : जगच्छ्रेणी का सातवां वर्गमूल = J11123 शुक्र--महाशुक्र जगच्छ्रेणी : जगच्छ्रेणी का पांचवां वर्गमूल = J +J132
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