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________________ I लेश्या लौकान्तिक देवों का वर्णन नन्दीश्वर समुद्र को वेष्ठित करता हुआ नौवां अरुणवर द्वीप है। इसकी बाह्य जगती से १७२१ योजन प्रमाण दूर जाकर आकाश में अरिष्ट नामक अन्धकार वलयरूप से स्थित है और सौधर्म - ईशान - सानत्कुमार- माहेन्द्र स्वर्गों को आच्छादित करता हुआ ब्रह्म कल्प में अरिष्ट नामक इन्द्रक के तल भाग में एकत्रित होता है। यहां से ये अंधकार आठ श्रेणियों में विभक्त हो जाता है। मृदूंग सदृश आकार की ये तम पंक्तियां चारों दिशाओं में दो-दो होकर विभक्त एवम् तिरछी होती हुई लोक - पर्यन्त चली गई हैं। उन अंधकार पंक्तियों के अन्तराल में लौकान्तिक देवगण अवस्थित रहते हैं। ईशान दिशा में सारस्वत, पूर्व दिशा में आदित्य, आग्नेय दिशा में वन्हिदेव, दक्षिण दिशा में अरुण देव, नैऋत्य दिशा में गर्दतोय, पश्चिम दिशा में तुषित वायव्य दिशा में अव्याबाध और उत्तर दिशा में अरिष्ट, ये आठ प्रकार के देव रहते हैं। इनके अन्तराल में दो-दो अन्य देव अवस्थित रहते हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : देवों के नाम संख्या संख्या अन्तः देव सारस्वत आदित्य | वन्हिदेव सौधर्म व ईशान स्वर्ग में मध्यम पीत, सानत्कुमार व माहेन्द्र स्वर्ग में उत्कृष्ट पीत व जघन्य पद्म ब्रह्म से महाशुक्र तक मध्यम पद्म शतार व सहस्त्रार स्वर्ग में उत्कृष्ट पद्म व जघन्य शुक्ल, आनत से अच्युत स्वर्ग तक मध्यम शुक्ल लेश्या होती है। अरुण गर्दतोय तुषित अत्याबाध अरिष्ट योग 1900 ७०० ७००७ ७००७ ६००६ ६००६ ११०११ ११०११ ५५.४५४ अंतराल के देव अनलाभ सूर्याभ चंद्राभ सत्याभ श्रेयस्क क्षेमंकर वृषभेष्ट कामधर १.३५ ७००७ ६००६ ११०११ १३०१३ १५०१५ १७०१७ १६०१६ २१०२१ १,१२,११२ निर्माणराज दिगंतरक्ष. आत्मरक्ष सर्वरक्ष मरुदेव वसुदेव अश्वदेव विश्वदेव संख्या २३०२३ २५०२५ २७०२७ २६०२६ ३१०३१ ३३०३३ ३५०३५ ३७०३७ २,४०,२४०
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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