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(३) ऊर्जा (पानी की तरह) उच्च स्तर से निम्न स्तर की ओर बहती है। अतएव
यदि उपचारक के स्वयं के ऊर्जा शरीर का ऊर्जा स्तर रोगी के ऊर्जा शरीर के ऊर्जा स्तर से अधिक होगा, तभी वह प्राण ऊर्जा को रोगी के ऊर्जा शरीर में प्रेषण कर पायेगा। यदि कदाचित् उसका ऊर्जा स्तर निम्न हो ओर वह रोगी का उपचार करने का प्रयत्न करे, तो रोगी के ऊर्जा शरीर की रोग ग्रसित ऊर्जा का एक अंश वह स्वयं ग्रहण कर लेगा और वह स्वयं रोगी हो सकता है। इसके अतिरिक्त रोगी को कोई लाभ नहीं पहुंचेगा। उपचारक के निदेशित किये जाने पर प्राण ऊर्जा तदनुसार कार्य करती है। उदाहरण के तौर पर रादि उसको मूलाधार चक्र की सफाई अथवा शरीर के अस्थि तंत्र को शक्ति प्रदान करने के लिए निदेशित किया जाये, तो वह उसी प्रकार कार्य करेगी। विद्युतीय-बैंगनी (electric violet) प्राण ऊर्जा की एक अपनी स्वयं की चेतना (consciousness) होती है और यदि उससे निवेदन किया जाये तो उपचारादि सम्बन्धी कार्यों के विषय में स्वयं निर्णय लेकर तदनुसार कार्य कर सकती है। सामान्य परिस्थितियों में चक्र प्राणशक्ति ऊर्जा को तेज गति से बारी-बारी से खींचते और प्रक्षेपित करते हैं। अंदर खींची गयी और बार भेजी गयी या प्रक्षेपित की गयी प्राणशक्ति की मात्रा लगभग समान होती है। चक्र घड़ी उल्टी दिशा में १८० डिग्री और घड़ी की उल्टी दिशा में १८० डिग्री पर बारी-बारी से तेजी से घूमता है। जब हाथ चक्र मुख्य रूप से प्राणशक्ति प्रक्षेपित करता है तब घड़ी की उल्टी दिशा में ३६० डिग्री पर घूमता है और घड़ी की सीधी दिशा में केवल १८० डिग्री पर घूमता है। जब हाथ चक्र घड़ी की उल्टी दिशा में घूमता है तब वह प्राणशक्ति को प्रक्षेपित करता है और एक क्षण रुककर घड़ी की दिशा में घूमने लगता है और प्राणशक्ति को ग्रहण करता है। इसके बाद फिर एक क्षण के लिए रुक जाता है। यह पूरी प्रक्रिया दोहरायी जाती है। प्राणशक्ति का प्रक्षेपण और उसको प्राप्त करने की प्रक्रिया लगातार नहीं होती। ऐसा केवल दिखाई देता है क्योंकि चक्र बहुत ही तेज गति से और बारी-बारी से घड़ी की उल्टी और सीधी दिशा में घूमता है। इसीलिए प्राणशक्ति को लगातार प्रक्षेपित करने या लगातार ग्रहण करने का आभास होता है। प्रक्षेपित
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