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________________ क्रम | विषय 9. ८. ६. १०. ११. १२. १३. ४. १५. प्राण ऊर्जा द्वारा मनोरोगों का उपचार निदेशात्मक उपचार प्रार्थना द्वारा उपचार रत्नों द्वारा प्राणशक्ति उपचार जिन्सेंग- इसका उपयोग पूरक उपचार के रूप में करें दिव्य उपचार बेहतर स्वास्थ्य के लिए मार्ग दर्शन ऊर्जा के अन्य उपयोग (अध्यात्म के अतिरिक्त) प्राण ऊर्जा क्षेत्र में खोज व अनुसंधान योग्यता अध्याय २३ के क्रम १ में वर्णित क्रम ६ में दक्षता अध्याय २६ के क्रम ४ में वर्णित अध्याय ३० के क्रम २ में वर्णित अध्याय ३३ के क्रम २ में वर्णित क्रम ६ व ७ में वर्णित उपचार की अर्धदक्षता सभी उपचारों में अर्ध-दक्षता / दक्षता सन्दर्भ अध्याय २३, २४ २५ २६ २८ से ३१ तक ३२ ५.२ ३३ ३४ ३६. ३० (ख) प्राण ऊर्जा उपचार में उपयोग के सिद्धान्त - Principles of Application of Pranic Energy (9) प्राण ऊर्जा के स्वयमेव प्रवाह का वर्णन भाग ४ में दिया है। ऊर्जा विचारों के पीछे चलती है। इस नियम के तहत उपयोगकर्ता इस ऊर्जा का प्रवाह अपनी इच्छाशक्ति द्वारा कर सकता हैं । यदि मन में व्यक्ति यह संकल्प करे कि मैं प्राण ऊर्जा को ग्रहण अथवा प्रेषित कर रहा हूं तो तद्नुसार ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस सिद्धान्त का उपयोग रोगी के ऊर्जा शरीर में से रोगी ऊर्जा को बाहर निकालने एवम् स्वस्थ ऊर्जा का प्रत्यारोपण करने के लिये किया जाता है । (२) ऊर्जा शरीर का भौतिक शरीर से अत्यधिक घना सम्बन्ध है। इसलिये यदि रोगी के ऊर्जा शरीर की चिकित्सा कर दी जाए, तो रोगी स्वस्थ हो जाता है।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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