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________________ चक्रों में वितरण किया जाता है। भू-प्राण तलवे के चक्रों द्वारा सोख लिया जाता है, तब मूलाधार चक्र को जाता है। इस भू-प्राण का एक अंश रीढ़ की हड्डी और अन्य चक्रों को जाता है, जब कि इसका एक बड़ा भाग पैरिनियम लघु चक्र, फिर नाभि चक्र, फिर प्लीहा चक्र को जाता है, जहाँ यह तोड़ा जाता है और अन्य चक्रों को वितरित किया जाता है। ये सब प्रक्रियायें स्वयमेव ही होती रहती हैं अथवा अर्ध चेतना (sub-conscious) स्तर पर होती हैं। रंगीन प्राण सफेद प्राण से अधिक शक्तिशाली होता है। जैसे शारीरिक रोग के उपचार के लिये साधारण चिकित्सक के बजाय किसी विशेषज्ञ के पास जाया जाता है, उसी प्रकार इसको समझना चाहिए। इन रंगीन प्राणों के गुण आदि भाग ५, अध्याय ८ में शारीरिक एवम् मनोरोगों के उपचार के प्रसङ्ग में किया गया है। अध्याय- १६ प्राण ऊर्जा के सिद्धान्त Principles of Prame Emergy वैषजगत पंतपदेवपक्सगे कलिंदपक-दिमतहल जीवन की शक्ति [Life Force) के कुछ मूल सिद्धान्त हैं जो सहज समझने के लिए निम्नलिखित हैं: १. जीवन शक्ति का सिद्धान्त- Principle of Life Force किसी भी जीवन की सत्ता के विद्यमान रहने के लिए, उसकी जीवन शक्ति (अथवा ओजस्वी ऊर्जा) होनी चाहिए। (शास्त्रों में दस प्राणों में से मनोबल, वचन बल तथा काय बल को प्राण माने गये हैं।) इस जीवन शक्ति को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, जिनमें से एक नाम "प्राण' भी है। यदि इस जीवन शक्ति को अथवा प्रभावित अंग के प्राण-स्तर को बढ़ा दिया जाये, तो उपचार शीघ्र हो जाता है।
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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