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अध्याय- १५
सफेद एवम् रंगीन प्राण ऊर्जा
वायु प्राण, सूर्य प्राण और भू-प्राण सफेद अथवा साधारण प्राण ऊर्जा होते हैं। परादर्शी भाषा ( esoteric parlance) में वायु और भू-प्राण ओजस्वी गोले vitality globules कहलाते हैं, क्योंकि जय इनको दर्शी अथवा अधिक संवेदनशील नेत्रों द्वारा देखा जाता है तो यह प्रकाश के छोटे-छोटे आकाश मण्डल ( globules of light) जैसे भासित होते हैं। ये ओजस्वी गोले अलग-अलग आकार में होते हैं। कुछ में सफेद प्राण अधिक मात्रा में होता है, तो कुछ में कम ।
भू-प्राण पृथ्वी से ऊपर कई इंच तक ऊपर वर्तमान होते हैं। ये अधिक घने होते हैं, ज्यादा पास-पास रहते हैं एवम् साधारणतः वायु प्राण के ओजस्वी गोले से अधिक बड़े होते हैं। इनसे कुछ ज्यादा बड़े वायु ओजस्वी गोलों को विशेष तौर पर सूर्यास्त से कुछ मिनट पहले आकाश की ओर घूरते हुए आसानी से देखा जा सकता है। इन वायु ओजस्वी गोलों को देखने के लिये परादर्शी होना जरूरी नहीं है। अधिक अभ्यास से भू-प्राण के ओजस्वी गोलों को भी देखा जा सकता है।
प्राण ऊर्जा द्वारा शारीरिक अंगों की सफाई तथा ऊर्जन किया जा सकता है । इसी प्रकार ऊर्जा चक्रों की सफाई तथा ऊर्जन किया जाता हैं। ऊर्जा चक्रों का संकोचन (inhibition) तथा विस्तृतीकरण ( enlargement) भी विशेष रंगीन ऊर्जा द्वारा किया जा सकता है। विद्युतीय बैंगनी ऊर्जा द्वारा नकारात्मक ऊर्जा, नकारात्मक सोच के आकारों एवं नकारात्मक परजीवियों की सफाई एवं उनको नष्ट किया जाता है तथा अंगों / चक्रों को ऊर्जित एवम् सामान्य भी किया जाता है। इन प्रक्रियाओं से शारीरिक एवम् मनोरोगों का उपचार किया जाता है। इन प्राण ऊर्जाओं के अन्य भी उपयोग हैं। इन सबकी विधि आदि की चर्चा भाग ५ में विस्तारपूर्वक की गयी है ।
ओजरची गोलों को ऊर्जा चक्र सोख लेते हैं तथा उनको पचाते हैं और विभिन्न घटकों में अलग कर देते हैं। जैसा कि पहले वर्णन किया जा चुका है, सफेद प्राण छह रंगों के प्राणों- लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला और बैंगनी रंगों के प्राणों में परिवर्तित हो जाता है। वायु प्राण काफी मात्रा में अगले व पिछले प्लीहा चक्र सीधा ही . सोख लेते हैं जहाँ यह रंगीन प्राणों में तबदील हो जाता है और जहाँ से इनका अन्य
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