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________________ मनो- अवर्तमान दृश्यों का अवलोकन एवम ध्वनियों का श्रवण (hallucinationboth visual and audio), मानसिक विकृति (paranoid) जिसमें दूसरे से क्रूर व्यवहार करना तथा अविश्वास करना है, नशीले पदार्थों की लत, Multiple Syndrome, आशंकितता/भयातुरता (nervousness)। (घ) विविध- इस चक्र में १४४ पटल होते हैं जो १२ भागों (divisions) में विभाजित होते है- प्रत्येक भाग में १२ पटल होते हैं। ललाट चक्र में अवस्थित ऊर्जा का रंग हल्का बैंगनी, नीला, लाल, नरंगी, पीला और हरा होता (11) ब्रह्म चक्र- CROWN CHAKRA (क) स्थिति- यह सिर के तालु (crown) पर स्थित होता है। (ख) कार्य-यह पिनीयल ग्रंथि, मस्तिष्क और पूरे शरीर को नियंत्रित एवम् ऊर्जित करता है। प्राणशक्ति के प्रवेश के लिए यह एक प्रमुख केन्द्र है। ब्रह्म चक्र को ऊर्जित करने पर इसका प्रभाव पूरे शरीर को ऊर्जित करने के समान होता है। यह कुप्पी (funnel) में पानी डालने के समान है जिससे पूरे शरीर में प्राणशक्ति प्रवाहित होकर बहती है। इसलिए कुछ उपचारक शरीर के किसी भी अंग में रोग होने पर, सीधे ब्रह्म चक्र को ऊर्जित करते हैं। यह चक्र दिव्य ऊर्जा (अत्यन्त चमकीली सफेद अथवा विद्युतीय बैंगनी ऊर्जा) का एक मात्र प्रवेश केन्द्र है। आध्यात्मिक डोरी (spiritual cord) (अन्तःकरण) से जुड़ा होता है। ब्रह्म चक्र से निकलती हुई डोरी की मोटाई को (scanning) (इसका वर्णन भाग ५, अध्याय ४. क्रम ५ (ङ) में है) की पद्धति से ज्ञात किया जा सकता है। इसकी मोटाई बाल बराबर से लेकर आध्यात्मिक योगी के केस में कई इंच या उससे अधिक या सिर से भी अधिक मोटी होती है। इन कारणों से इस चक्र को दिव्य चक्र भी कहते हैं। ब्रह्म चक्र उच्च श्रेणी के दिव्यज्ञान (Higher Buddhic or cosmic consciousness) का केन्द्र है, अध्यात्म के उत्थान (spirituality) और दिव्यता का केन्द्र है। दिव्य ज्ञान से यहां तात्पर्य लम्बे समय तक के अध्ययन, तार्किक ज्ञानादि से नहीं है, किन्तु किसी वस्तु का एकदम से ज्ञान का तात्पर्य है। ४.४३
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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