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________________ "द्विहृदय पर ध्यान-चिन्तन' के अन्तर्गत इसको दैवीय हृदय के तौर पर माना गया है। इसका वर्णन भाग ५, अध्याय ३ में किया गया है। (ग) चक्र के गलत ढंग से कार्य करने के कारण रोग शारीरिक-- पिनीयल ग्रंथि से सम्बन्धित रोग, मस्तिष्क से सम्बन्धित रोग। मनो- जैसा कि (७) आज्ञा चक्र में वर्णित है। सभी मनोरोगों में इस चक्र का उपचार आवश्यक होता है। (घ) विविध- इस चक्र में ६६० बाह्य एवम् १२ आन्तरिक पटल होते हैं। बाह्य पटल ऊर्ध्वमुखी तथा आन्तरिक पटल नीचे की ओर मुख किये हृदय चक्र के पटलों के सम्मुख होते हैं। बाह्य पटलों में हल्के बैंगनी, नीले, पीले, हरे, नारंगी और लाल रंग की प्राण ऊर्जा होती है। आन्तरिक पटलों में मुख्यतः सुनहरी ऊर्जा होती है। इस चक्र के माध्यम से बैंगनी, नीले-बैंगनी, हरे-बैंगनी, हरे-पीले, सूक्ष्म/गूढ़ पीले रंग की प्राणिक ऊर्जा एवम् अत्यन्त चमकीली सफेद/विद्युतीय बैंगनी (electric violet} और सुनहरे रंग की दिव्य ऊर्जायें उन्धारक उपचार हेतु लेते हैं। ४.४४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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