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________________ धूम्रपान, नशीले पदार्थों की लत, शराब पीने की लत, अवर्तमान पदार्थों / दृश्यों का दिखाई देना, निराशा / मायूसी, मानसिक विकृति (paranoid) जिसमें दूसरे के प्रति क्रूर व्यवहार करना तथा अविश्वास करना है, मल्टिपिल सिन्ड्रोम (multiple syndrome concurrent symptoms in disease), स्व प्रकटता का अभाव (lack of self-expression), बिस्तर में मूत्र त्याग आदि। सभी मनोरोगों में इस चक्र का उपचार अत्यन्त आवश्यक है। इस चक्र का स्व- दृढ़ इच्छाशक्ति एवम् नेताओं / शिष्यों के लिए अत्यन्त महत्त्व है । (घ) विविध -- इस चक्र में ६६ पटल होते हैं और यह दो भागों (divisions ) में बंटा होता है, जिसमें प्रत्येक के ४८ पटल होते हैं। कुछ व्यक्तियों में एक भाग में मुख्यतः हल्के पीले और दूसरे भाग में हल्के बैंगनी रंग की ऊर्जा होती है। कुछ व्यक्तियों में एक भाग में हल्के हरे और दूसरे भाग में हल्के बैंगनी रंग की ऊर्जा होती है। विभिन्न व्यक्तियों के आज्ञा चक्र में अवस्थित ऊर्जा का प्रमुख रंग अलग-अलग होता है। व्यक्ति की मनोदशा के अनुसार यह रंग बदलता रहता है । ( 10 ) ललाट चक्र - FOREHEAD CHAKRA (क) स्थिति - यह चक्र ललाट यानी माथे के मध्य में होता है। (ख) कार्य - यह पिनीयल ग्रंथि और तंत्रिका तंत्र (nervous system) को नियंत्रित व ऊर्जित करता है। इस चक्र को ऊर्जित करने से ब्रह्म चक्र की भांति एक के बाद दूसरे चक्र के माध्यम से पूरे शरीर में प्राणशक्ति का वितरण होता है । यह चक्र निम्न श्रेणी के दिव्य ज्ञान (lower Buddhic or cosmic consciousness ) का केन्द्र है। इसके अतिरिक्त यह अन्तर्ज्ञान (intution) का स्थान ( seat) है अर्थात इस चक्र के माध्यम से बाहरी आयाम अथवा चतुर्थ आयाम (outer dimension or fourth dimension) में झांका जाता है। (ग) चक्र के गलत ढंग से कार्य करने के कारण रोग शारीरिक तंत्रिका तंत्र से सम्बन्धित रोग, याददाश्त की कमी या लुप्त हो जाना, लकवा, मृगी (epilepsy) | ४.४२
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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