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अगला हृदय चक्र कई बड़े जीवद्रव्य नाड़ियों द्वारा सौर जालिका चक्र से जुड़ा रहता है। यह कुछ मात्रा में सौर जालिका चक्र से भी ऊर्जा प्राप्त करता है। सौर जालिका चक्र भावना, तनाव और दबाव के प्रति बहुत संवदेनशील होता है और हृदय व अगले हृदय चक्र पर अधिक प्रभाव रखता है। हृदय रोग के व्यक्तियों में आम तौर पर सौर जालिक चक्र ठीक प्रकार से कार्य नहीं करता।
अगले हृदय चक्र को ऊर्जित करने पर वह शीघ्र ही हृदय को ऊर्जा पहुंचाता है। चूंकि प्राणशक्ति ऊर्जा एक जगह स्थिर होती है और वह शरीर के अन्य हिस्सों में आसानी से नहीं फैलती, इस कारण से इससे हृदय पर प्राणशक्ति का घनापन बढ़ जाता है जिससे हृदय को हानि पहुंच सकती है। इस कारण अगले हृदय चक्र को साधारणतः ऊर्जित नहीं किया जाता, अपितु सम्पूर्ण हृदय चक्र को पिछले हृदय चक्र के माध्यम से ऊर्जित किया जाता है जिससे हृदय पर प्राण शक्ति का घनापन नहीं होता। पिछले हृदय चक्र द्वारा पूरे शरीर को ऊर्जित किया जा सकता है।
हृदय चक्र उच्च भावनाओं का केन्द्र है। इसके क्रियाशील होने से निम्न भावनाएं उच्च भावनाओं में परावर्तित हो जाती हैं। उच्च भावनाओं के उदाहरण शान्ति, सहृदयता, करुणा, मैत्री, भद्रता, धैर्य, दया, क्षमा, उदारता, आनन्द हैं। चूंकि हृदयचक्र एवम् सौर जालिका चक्र दोनों ही भावनाओं के केन्द्र हैं, अतएव दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। इसलिये सौर जालिका चक्र के आन्दोलित होने के फलस्वरूप हृदय चक्र भी आन्दोलित होता है जिससे लम्बे समय में हृदय व हृदय चक्र दोनों को आघात पहुंचता है।
हृदय चक्र में १२ पटल होते हैं जो ऊपर की ओर ब्रह्म चक्र के १२ पटलों (जो नीचे की ओर होते हैं) के सम्मुख होते हैं। अतएव इस कारण से ब्रह्म चक्र के माध्यम से ग्रहण हुई दैवीय ऊर्जा (divine energy) के लिये हृदय चक्र समाप्ति बिन्दु का कार्य करता है, अर्थात् यहां आकर दैवीय ऊर्जा समाप्त हो जाती है। इस कारण से यह चक्र दैवीय ऊर्जा के दूसरे चक्र का भी कार्य करता है तथा इस चक्र द्वारा "द्विहृदय पर ध्यान-चिन्तन" के अन्तर्गत लोगों की ओर दया, करुणा और इस प्रकार की उच्च भावनाओं को प्रसारित किया जाता है। द्विहृदय पर ध्यान-चिन्तन के विषय में भाग ५ के अध्याय ३ में वर्णन किया गया
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