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________________ काफी तादाद में पाया जाता है। कभी- कभी ये नकारात्मक परजीवी इन स्थानों से किसी व्यक्ति के साथ-साथ चले जाते हैं और उस व्यक्ति के चक्र के ऊर्जा जालियों पर अवस्थित हो जाते हैं। नकारात्मक सोच के आकार व नकारात्मक परजीवी किसी भी व्यक्ति के शारीरिक एवम् मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। जबकि इसके विपरीत सकारात्मक भावनायें और सकारात्मक सोच के आकार (जैसे कि प्रसन्नता, दया, उत्साह, करुणा आदि) व्यक्ति के शारीरिक एवम् मानसिक स्वास्थ्य पर लाभदायी प्रभाव डालते हैं। नकारात्मक भावनायें जब उजागर अथवा दबे हुए शारीरिक आक्रमणता के साथ होते हैं, तो शरीर के निम्न भाग में स्थित चक्र जैसे मूलाधार चक्र व कटि चक्र प्रभावित हो जाते हैं, जिस कारण से उच्च रक्तचाप, क्षतिग्रस्त गुर्दे, स्लिप डिस्क (herniated disc), त्वचा रोग, रिह्यूमैटोइड सन्धिवात, रक्तरोगादि हो जाते नकारात्मक और सकारात्मक भावनाओं दोनों का आसपास के व्यक्तियों पर भी प्रभाव पड़ता है। तभी यह कहा जाता है कि संगति का असर होता है। यही कारण है कि जब हम किसी साधु के दर्शन करते हैं, तो आत्मा अत्यन्त तृप्त हो जाती है और एक अवर्चनीय आत्मानन्द की प्राप्ति होती है। (घ) विविध- सौर जालिकाचक्र में दस पटल होते हैं। इस चक्र में लाल, पीले, हरे और नीले रंग की ऊर्जा होती है। इसके अलावा थोड़ी सी नारंगी और बैंगनी रंग की भी ऊर्जा होती है। (7) हृदय चक्र- HEART CHAKRA (क) स्थिति- ये दो भागों में होता है। अगला हृदय चक्र छाती के मध्य, दोनों स्तनाग्रों (nipples) के ठीक बीच में। पिछला हृदय चक्र अगले हृदय चक्र के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी के ऊपर होता है। (ख) कार्य-- अगला हृदय चक्र थायमस ग्रंथि (thymus gland) और रुधिराभिसरण तंत्र (blood circulatory system) को नियंत्रित व ऊर्जित करता है। पिछला हृदय चक्र मुख्य रूप से फेफड़ों को तथा कम मात्रा में हृदय व थायमस ग्रंथि को नियंत्रित व ऊर्जित करता है। ४.३७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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