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शिशुओं और बच्चों का प्लीहा चक्र को ऊर्जित न करने की सलाह दी जाती हैं क्योंकि प्राणशक्ति के धनेपन से वे बेहोश हो सकते हैं। यदि कभी ऐसा हो जाये, तो सामान्य सफाई करें (सफाई का वर्णन व विधि भाग ५ में दी गई है)। उच्च रक्त चाप या इसका इतिहास रखने वाले रोगियों के लिए भी इस चक्र को ऊर्जित नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे रक्तचाप बढ़ सकता है। फिर भी बहुत बीमार और कमजोर रोगियों का इस चक्र द्वारा इलाज किया जा सकता है, किन्तु इसका उपचार अनुभवी या उन्नत प्राण शक्ति शिक्षा प्राप्त
उपचारक द्वारा ही किया जाना चाहिए। (ग) चक्र के गलत ढंग से कार्य करने के कारण रोग
शारीरिक- प्लीहा सम्बन्धी रोग, ओजस्विता की कमी, प्रतिरक्षात्मक स्तर का गिर जाना, गंदा रक्त या रक्त सम्बन्धी रोग, वात संधि, शारीरिक कमजोरी।
मनो– मायूसी एवम् उदासी (depression) (घ) विविध- इस चक्र में ६ पटल होते हैं। (6) सौर जालिका चक्र- SOLAR PLEXUS CHAKRA (क) स्थिति- यह चक्र दो भागों में बटा होता है। सामने की दोनों पसलियों के मध्य
में नीचे बीचों-बीच एक प्रकार की हड्डी की नोक होती है, उसके ठीक नीचे अगला चक्र अवस्थित है। उसके ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी के ऊपर पिछला चक्र
होता है। (ख) कार्य- यह चक्र छाती के डायफ्राम (diaphragm), पित्ताशय (gall bladder).
आमाशय (stomach), जिगर (liver), अग्न्याशय (pancreas), एक हद तक बड़ी व छोटी आंत, आंत्रपुच्छ (appendix), फैंफड़े, हृदय तथा शरीर के अन्य भागों को नियंत्रित और ऊर्जित करता है। यह चक्र रक्त की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है क्योंकि यह जिगर को नियंत्रित और ऊर्जित करता है जो रक्त में घुले हुए दूषित पदार्थों को साफ करता है। यह शरीर के तापमान को भी नियंत्रित करता है।
सौर जालिका चक्र ऊर्जा सफाई घर की तरह कार्य करता है। सूक्ष्म ऊर्जा निचले चक्रों से ऊपरी चक्रों की ओर इसी चक्र में से होकर जाती है। इस