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सावधानी - चूँकि नाभिचक्र का कटिचक्र से गहरा सम्बन्ध होता है, इसलिये उच्च रक्तचाप के रोगी को नाभिचक्र पर ध्यान केन्द्रित नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे हालत खराब हो सकती है।
(5) प्लीहा चक्र - SPLEEN CHAKRA
(क) स्थिति - यह चक्र दो भागों में होता है। अगला चक्र बाँयें छाती के सबसे नीचे वाली पसली के मध्य में होता है। पिछला चक्र अगले चक्र के ठीक पीछे पीठ पर होता है ।
(ख) कार्य - यह चक्र वायु प्राण (air vitality globules) के शरीर में प्रवेश का मुख्य बिन्दु है, इसलिये मनुष्य के स्वास्थ्य में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। यह वायु से वायु प्राण या सफेद प्राण ग्रहण करके उसको लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला और बैंगनी रंग के प्राणों में परिवर्तित करके अन्य प्रमुख चक्रों में वितरित कर देता है। दूसरे शब्दों में प्लीहा चक्र अन्य प्रमुख चक्रों को ऊर्जित करता है और इस प्रकार समस्त जीव द्रव्य और भौतिक शरीर को ऊर्जित कर देता है। इसका मतलब यह है कि अन्य प्रमुख नऊ एवं प्रमुख अंग प्राण ऊर्जा के लिए प्लीहा चक्र पर काफी निर्भर है।
इस चक्र का आकार कटि चक्र के समान अन्य चक्रों के आकारों से लगभग आधे से लेकर दो-तिहाई तक होता है। यह प्लीहा, शरीर की ओजस्विता, रक्त की गुणवत्ता और शरीर का प्रतिरक्षात्मक तंत्र (Immunity System) का नियंत्रण करता है। इस चक्र का कुछ वर्णन उक्त (4) नाभि चक्र के वर्णन में प्रसंगवश आया है, अतएव उसको वहाँ से देख लें ।
दूरदर्शियों के अवलोकन से ज्ञात हुआ है कि साधारणतः (किन्तु हमेशा नहीं) गम्भीर संक्रमण ( severe infection) से पीड़ित व्यक्ति का प्लीहा चक्र प्रभावित होता है। मैडिकल दृष्टिकोण से प्लीहा असाधारण पदार्थ, विशेष तौर पर कीटाणुओं को रक्त से अलग करता है और प्रतिशरीरों (Anti-bodies) को तैयार करता है। प्लीहा का वर्णन भाग २- मानव शरीर के अध्याय ६ में आया है। रिह्यूमैटोइड संधिवात (Rheumatoid arthritis) के रोगी का प्लीहा चक्र गंदा होता है |
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