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शारीरिक- कब्ज, एपेंडिसाइट्सि (appendicitis), शिशु जन्म में कठिनाई, ओजस्विता में कमी, आंत सम्बन्धी रोग, दस्त हो जाना, भोजन के हजम करने की अक्षमता। मनो- यह चक्र सब प्रकार के आन्तरिक भावना (instinct of knowing) अथवा छठी इन्द्रिय का केन्द्र हैं। साधारणतः स्त्रियों में यह शक्ति (instinctive power) अधिक होती है। इस पर की गड़बड़ी से उदासी एवम् मायूसी (depression) हो
जाती है। (घ) विविध- इस चक्र में ८ पटल होते हैं। इसमें मुख्यतः पीले, हरे, नीले, लाल और
बैंगनी रंग की प्राणिक ऊर्जा होती है, तथा कुछ अंश में नारंगी रंग की भी ऊर्जा होती है।
इस चक्र का अस्थि पिंजर और मांसपेशियों के तंत्र (muscular system) पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि इसका शरीर के पाचन, अवग्रहण व उत्सर्जन तंत्रों (digestive, assimilative and eliminative systems) पर गहरा नियंत्रण है। इसके अतिरिक्त इसका मूलाधार एवम् अन्य निम्नस्थित चक्रों के परिचालन एवम् सुव्यवस्थित कार्यशैली पर भी नियंत्रण है। वातसंधि (arthiritis) के रोगियों का नाभिचक्र कमजोर होता है।
इस चक्र का प्लीहा चक्र से निकट का सम्बन्ध है। जब नाभि चक्र अधिक ऊर्जित और कार्यशील होता है, तो प्लीहा चक्र भी काफी ऊर्जित हो जाता है और आंशिक रूप से क्रियाशील हो जाता है, जिसके कारण वह वायु से अधिक वायु प्राण ग्रहण करता है और इस प्रकार समस्त शरीर की प्राणिक ऊर्जा स्तर की वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार किसी व्यक्ति को नाभि चक्र पर ध्यान लगाने से ऊर्जित किया जा सकता है। नाभि चक्र पर ध्यान लगाने से वह क्रियाशील हो जाता है और ऊर्जित हो जाता है, जिसके फलस्वरूप प्लीहा चक्र क्रियाशील और ऊर्जित हो जाता है। इस प्लीहा चक्र के ऊर्जित होने के कारण अन्य चक्र भी ऊर्जित हो जाते हैं और इस प्रकार समस्त शरीर ऊर्जित हो जाता
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