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मनो– इसका अपना कोई प्रभाव नहीं पड़ता, किन्तु जो व्यक्ति हिंसात्मक होते हैं, उनका यह चक्र अधिक क्रियाशील होता है और ऐसे लोगों के चक्र को छोटा करना चाहिए। इसकी विधि भाग ५ के अध्याय ६ के क्रम (७) में दी गयी है। इसके अतिरिक्त यह चक्र ऊर्जा का पम्पिंग स्टेशन होने के कारण मनोरोगों में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है, जैसे यह मूलाधार चक्र से भय की ऊर्जा अथवा
अन्य नकारात्मक ऊर्जा ऊपर पम्प करके पूरे शरीर में फैला सकता है। (घ) विविध- इस चक्र में , पटल होते हैं। इसमें अधिक मात्रा में नारंगी रंग की
ऊर्जा व कम मात्रा में लाल रंग की ऊर्जा होती है। इसके अलावा काफी कम
मात्रा में पीले व नीले रंग की भी ऊर्जा होती है। (4) नाभि चक्र- NAVEL CHAKRA (क) स्थिति- यह टूंड़ी (Navel) पर अवस्थित होता है। (ख) कार्य- यह छोटी व बड़ी आंत और आंत्रपुच्छ (appendix) को नियंत्रित व
ऊर्जित करता है। यह व्यक्ति की सामान्य ओजस्विता को प्रभावित करता है। यह शिशु-- जन्म की गति को भी प्रभावित करता है। यह चक नीचे काम चक्र से आ रही ऊर्जा को ऊर्ध्व दिशा में प्रवाहित करता है।
नाभि चक्र एक कृत्रिम ऊर्जा (Synthetic ki- ki शब्द का अर्थ जापानी भाषा में ऊर्जा शक्ति है) का उत्पादन करता है। इस कृत्रिम ऊर्जा का भण्डार नाभि चक्र के ठीक नीचे की ओर अवस्थित तीन उप (secondary) नाभि चक्रों द्वारा होता है। यह कृत्रिम ऊर्जा प्राणशक्ति की ऊर्जा से बिल्कुल अलग प्रकार की होती है। इस कृत्रिम ऊर्जा का प्राण ऊर्जा के ग्रहण, वितरण व अवशोषण पर प्रभाव पड़ता है। खराब मौसम में वायु प्राणशक्ति की मात्रा में बहुत कमी आ जाती है। जिन व्यक्तियों की कृत्रिम ऊर्जा कम होती है, उनको वायु से प्राणशक्ति ग्रहण में काफी परेशानी होती है, जिस कारण से साधारण व्यक्ति की अपेक्षा ऐसे व्यक्ति बहुत ज्यादा थकान महसूस करते हैं।
कृत्रिम ऊर्जा (meridians) में प्राण के प्रवाह में एवम् ऊर्जा शरीर द्वारा प्राणशक्ति के ग्रहण करने में सहायक होती है। (ग) चक्र के गलत ढंग से कार्य करने के कारण रोग
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