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________________ - - (3) कटि चक्र- MENG MEIN CHAKRA (क) स्थिति- यह चक्र नाभि के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर होता है। (ख) कार्य- इसका आकार अन्य चक्रों से लगभग आधे से दो-तिहाई के बीच होता है। यह गुर्दे (Kidneys) और अधिवृक्क ग्रंथियों (Adrenal glands) को नियंत्रित करने और ऊर्जा पहुंचाने का कार्य करता है तथा रक्तचाप (blood pressure) को भी नियंत्रित करता है। यदि यह अधिक सक्रिय होता है तो उच्च रक्तचाप होता है और यदि यह कम सक्रिय होता है तो निम्न रक्तचाप होता है। इस चक्र का प्लीहा चक्र (Spleen Chakra) से गहरा सम्बन्ध होता है | यदि प्लीहा चक्र को ऊर्जित किया जाता है या यदि प्लीहा चक्र सक्रिय होता हे, तो कटि चक्र भी आंशिक रूप से स्वयमेव ही ऊर्जित हो जाता है। इस कारण से उच्च रक्तचाप के रोगी का प्लीहा चक्र ऊर्जित नहीं करना चाहिए। कटि चक्र का नाभि चक्र से भी निकट का संबंध होता है। मूलाधार चक्र से ऊर्जा का ऊर्ध्व प्रवाह कटिचक्र से होकर होता है। जिसके लिए यह एक पम्पिंग स्टेशन {pumping station) का कार्य करता है। रीढ़ की हड्डी में भी ऊर्जा का प्रवाह इसी चक्र के माध्यम से होता है। प्राणशक्ति के प्रारम्भिक उपचारकों को इस चक्र को ऊर्जित नहीं करना चाहिए, अन्यथा उल्टे उच्च रक्तचाप व अन्य समस्यायें पैदा हो सकती हैं। इसका ऊर्जन मात्र अनुभवी उपचारक ही करें। शिशुओं, बच्चों, गर्भवती स्त्रियां व बूढ़े व्यक्तियों का कटिचक्र ऊर्जित नहीं करना चाहिए। जबकि शिशुओं, बच्चों व बूढ़े व्यक्तियों का रक्तचाप बढ़ सकता है, गर्भवती स्त्रियों का गर्भपात भी हो सकता है अथवा गर्भस्थ शिशु मर सकता है। (ग) चक्र के गलत ढंग से कार्य करने के कारण रोग शारीरिक-- गुर्दे की बीमारी, उच्च / निम्न रक्तचाप, ओजस्विता या जीवनशक्ति में कमी, पीठ में दर्द आदि। यदि कटि चक्र, सौर जालिका चक्र (Solar Plexus Chakra), मूलाधार चक्र. आज्ञा चक्र एवं हृदय चक्र सभी गलत ढंग से कार्य करने लगें तो इससे शरीर के कोशिकाओं का असाधारण उत्पादन होता है जिससे अनेक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं |. ४.२७
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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